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________________ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना पूर्वोत्तर भारत में स्वामी रामानन्द, और सन्त कबीर, पंजाब में गुरुनानक, मध्यभारत में सन्त सुन्दरदास, महाराष्ट्र में ज्ञानदेव, नामदेव, तुकाराम और ज्ञानेश्वर थे। बंगाल में चैतन्यदेव, बिहार में विद्यापति ठाकुर, गुजरात में लोकाशाह और बुंदेलखंड में तारण स्वामी थे। इन सभी सन्तों ने भारतीय जीवन की नयी जाग्रति प्रदान की। तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार उन्होंने समाज में व्याप्त अन्ध विश्वासों और कुरीतियों को दूर करने का भरपूर प्रयत्न किया। मूर्तिपूजा, जाति-पांति और कर्मकाण्ड का अपनी-अपनी बोली में विरोध कर निर्गुण भक्ति का प्रचार किया तथा हिन्दू-मुस्लिम के बीच उत्पन्न खाई को पाटकर नयी सांस्कृतिक संरचना में सराहनीय योगदान दिया। मध्यकाल की उपर्युक्त सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में जैन साहित्य और संस्कृति का क्षेत्र अप्रभावित नहीं रह सका। आचार्यों ने समय और आवश्यकता के अनुसार अपनी सीमा के भीतर ही उसमें परिवर्तनपरिवर्धन किये, साहित्य की नयी विधायें प्रारम्भ की और प्राचीन विधाओं को विकसित किया। परमार्थ प्राप्ति के लिए वे सगुण और निर्गुण भक्ति के माध्यम से रहस्य भावना को आंचल में बांधकर साहित्य के क्षेत्र में उतरे। जिनोदयसूरि बनारसीदास, भैया भगवतीदास, आनन्दघन, विनोदीलाल, द्यानतराय, लक्ष्मीदास, पाण्डे लालचंद, दौलतराम, जिनसमुद्रसूरि, जिनहर्ष-आदि शताधिक कवि इस क्षेत्र के जाज्वल्यमान नक्षत्र रहे हैं जिन्होंने अपनी चिरन्तन जीवन कृतियों में अध्यात्मरस को बड़े प्रभावक ढंग से प्रस्तुत किया है। आदिकाल से मध्यकाल तक की इस यात्रा में हिन्दी जैन साहित्यकारों ने अनेक पड़ाव बनाये, उन्हें समृद्ध किया और फिर वे आगे चल पड़े। उनकी गति कहीं रुकी नहीं। साहित्य साधना की
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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