________________
53
काल-विभाजन एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
इस सामाजिक पृष्ठभूमि में हिन्दी जैन साहित्य का निर्माण हुआ । कविवर बनारसीदास, भैया भगवतीदास, द्यानतराय, आनन्दघन जैसे अध्यात्मरसिक कवियों ने साहित्य साधना की । जैन समाज में प्रचलित अन्धविश्वासों और रूढ़ियों को उन्होंने समाप्त करने का प्रयत्न किया । ज्ञान का प्रचार किया और आचार से उसका समन्वय किया ।
इधर जब वैष्णव- सम्प्रदाय सामने आया तो भक्ति और अहिंसा की पृष्ठभूमि में उसका आचार-विचार बना। जैनधर्म का यह विशेष प्रभाव था। पूजा स्वाध्याय, योगसाधना आदि नैमित्तिक क्रियायें बनी । जैन-बौद्धों के चौबीस तीर्थंकरों के अनुसरण में उन्होंने चौबीस अवतार माने जिनमें ऋषभदेव और बुद्ध को भी सम्मिलित कर लिया गया। धीरे-धीरे वैष्णवी मूर्तियां भी बनने लगीं । वस्त्राभूषणों से उनकी सज्जा भी होने लगी । भक्ति भाव के कारण भक्त राजेमहाराजों ने मूर्तियों और मन्दिरों को सोने चांदी से ढक दिया। फलतः आक्रमणकारियों की लोलुपी आंखों से वे न बच सके। शंकर के मायावाद, रामानुजाचार्य के विशिष्टाद्वैतवाद, माधवाचार्य के द्वैतवाद और निम्बार्क के द्वैताद्वैतवाद ने वेदान्त की सूत्रावलि से अध्यात्मवाद के बढ़ते हुए स्वर कुछ धीमे पड़ गये। बाद में हिन्दू और मुसलमानों में एकता प्रस्थापित करने के लिए अनेक प्रयत्न प्रारम्भ हुए। मुइनुद्दीन चिश्ती आदि कुछ मुस्लिम फकीरों ने इस्लाम को भारतीयता के ढांचे में ढालने का प्रयत्न किया। जायसी जैसे सूफी कवियों ने हिन्दी भाषा में ग्रंथ लिखे और हिन्दी कवियों ने उर्दू भाषा में। निर्गुण और सगुण भक्ति आन्दोलन अधिक विकसित हुए ।