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________________ 44 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना कुवलयमाला, जिनसेन ने सं.७८३ में हरिवंशपुराण और हरिभद्र सूरिने लगभग इसी समय समराइच्च कहा आदि ग्रन्थों का निर्माण किया। देवगढ़, खजुराहो आदि के अनेक जैन मन्दिर इसी के उत्तरकालीन हैं। आचार्य सोमदेव के यशस्तिलकचम्पू (९५९ ई.) नीतिवाक्यामृत आदि ग्रन्थ भी इसी समय के हैं। ___ धारा के परमार वंशीय राजाओं ने जैन कवियों को विशेष राजाश्रय दिया। राजा मुंज, नवसाहसांक, भोज आदि राजा जैन धर्मावलम्बी रहे। उन्होंने जैन कवि धनपाल, महासेन, अमितगति, माणिक्यनंदी, प्रभाचन्द्र,नयनन्दी, धनंजय आशाधर आदि विद्वानों को समुचित आश्रय दिया। मेवाड की राजधानी चित्तौड़ (चित्रकूटपुर) जैनधर्म का विशिष्ट केन्द्र था। यहीं पर एलाचार्य, वीरसेन, हरिभद्रसूरि आदि विद्वानों ने अपनी साहित्य-सर्जना की। चित्तौड़ के प्राचीन महलों के निकट ही राजाओं ने भव्य जैन मन्दिर बनवाये। हथूडी का राठौर वंश जैनधर्म का परम अनुयायी था। वासुदेव सूरि, शान्तिभद्र सूरि आदि विद्वान इसी के आश्रय में रहे हैं। चन्देलवंश में चन्देल वंशीय राजा भीजैनधर्म के परम भक्त थे। खजुराहो के शान्तिनाथ मंदिर में आदिनाथ की विशाल प्रतिमा की प्रतिष्ठा विद्याधर देव के शासनकाल में हुई। देवगढ, महोबा, अजयगढ़, अहार, पपोरा, मदनुपरा आदि स्थान जैनधर्म के केन्द्र थे। ग्वालियर के कच्छपघट राजाओं ने भी जैनधर्म को खूब फलने-फूलने दिया। कलिंग राज्य प्रारम्भ से ही जैनधर्म का केन्द्र रहा है। जैनाचार्य अकलंक का बौद्धाचार्यों के साथ प्रसिद्ध शास्त्रार्थ यही हुआ। परन्तु
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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