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________________ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना यमुनाचार्य, रामानुज, रामानन्द, तुलसीदास आदि प्रसिद्ध आचार्य और सन्त हुए हैं। रामानुज का विशिष्टाद्वैतवाद विशेष प्रसिद्ध रहा है । 40 महानुभाव सम्प्रदाय मात्र कृष्ण का आराधक था और वह मूर्ति के स्थान पर केवल प्रतीक की पूजा करता था। यह सम्प्रदाय स्मार्त के आधार पर विरोधी तथा साम्प्रदायिक था। दत्तात्रेय इसके प्रस्थापक आचार्य माने जाते हैं। महाराष्ट्र और कन्नड प्रदेशों में इसका विशेष प्रचार था। रामानुज सम्प्रदाय में राम की कथा को आध्यात्मिक मोड़ मिला। तदनुसार राम, माया, मनुष्य और सीता मायाच्छादित चिच्छक्ति थी। इस पर अद्वैत वेदान्त और शाक्त सम्प्रदायों का प्रभाव था। यह सम्प्रदाय दक्षिण से लेकर उत्तर भारत में लोकप्रिय हुआ । पं. बलदेव उपाध्याय ने वैष्णव भक्ति आन्दोलन को तीन भागों में विभाजित किया है - अ) सात्वतयुग (१५०० ई.पू. से ५०० ई. तक) ब) अलवार युग ( ७०० से १४०० ई.) और स) आचार्य युग ( मध्ययुग १४०० से १९०० ई.) । सात्वत सम्प्रदाय पांचरात्र की उदयभूमि मथुरा रही है। शुंग और गुप्त राजाओं ने इसे अधिक प्रश्रय दिया है। अलवार युग में भक्ति का रूप और गाढ़ हो गया। यह दक्षिण में अधिक प्रचलित रहा । तृतीय युग राम और कृष्ण शाखा में विभाजित हो जाता है। उत्तर भारत में इसका काफी विकास हुआ है। निर्गुण सम्प्रदाय इसी आंदोलन से संबद्ध है। वैष्णव सम्प्रदाय के साथ ही शैव सम्प्रदाय का भी विकास हुआ। इस शैव सम्प्रदाय के दो भेद मिलते है- पाशुपत और आगमिक। पाशुपत के अन्तर्गत शुद्ध पाशुपत, लकुलीश पाशुपत, कापालिक और नाथ आते हैं। आगमिक सम्प्रदाय में संस्कृत शैव, तमिल शैव, काश्मीर शैव और वीर शैव को अन्तर्भूत किया गया है। पाशुपत
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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