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काल-विभाजन एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ___ 39 विकास-पथ निर्मित हुए। बाह्याडम्बर के साथ ही आचार-शैथिल्य बढ़ गया। तात्कालिक साहित्य, धर्म और भक्ति की प्रेरणा से अधिक समृद्ध हुआ। वैदिक, जैन और बौद्ध धर्मों के विकास और परिवर्तन के विविध स्वरूप विशेष रूप से लक्षित होते हैं। इसे हम संक्षेप में निम्न प्रकार से देख सकते हैं। १. वैदिक धर्म
मध्ययुग में वैदिक धर्म ने विशेष रूप से दार्शनिक क्षेत्र में प्रवेश किया। प्रभाकर और कुमारिल ने मीमांसा के माध्यम से और शंकराचार्य ने वेदान्त के माध्यम से वैदिक दर्शन का पुनरुत्थान किया। शंकराचार्य ने तो बौद्ध धर्म की बहुत सी सामग्री लेकर उसे आत्मसात करने का प्रयत्न किया। इसलिए उन्हें “प्रच्छन्न बौद्ध” भी कहा जाता है। इसी युग में पौराणिक और स्मार्त धर्मो का समन्वयात्मक रूप सामने आया। स्मार्तो ने विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य और गणेश इन पंचदेवों की पूजा आरंभ कर दी। इन्हीं के आधार पर पांच उपनिषद् भी लिखे गये। यह उपनिषद् दर्शन, स्मार्त और वेदान्त दर्शन से एक जुट हो गया। वैष्णव धर्मावलम्बी कवियों ने ऐसे ही धर्म को स्वीकार किया है। भागवत और पांचरात्र साम्प्रदाय भी वैष्णव धर्म के अंग रहे हैं। भागवत सम्प्रदाय ने शिव और विष्णु में अभिन्नत्व स्थापित किया। वैदिक पूजा-पद्धति से वे विशेष प्रभावित थे। वैष्णव धर्म और साहित्य के देखने से यह स्पष्ट है कि उनमें शाक्त सिद्धान्तों का समावेश हुआ।
पांचरात्र सम्प्रदाय भी अनेक उपसम्प्रदायों में विभक्त हो गया। वैष्णव, महानुभाव और रामानुज उनमें प्रमुख उपसम्प्रदाय थे। वैष्णव पांचरात्र सम्प्रदाय उत्तर से दक्षिण तक फैला था। तमिल प्रदेश में उसका विशेष प्रचार था। उसमें नाथमुनि, पुण्डरीकाक्ष,