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वाटेती है।
हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना संत्रस्त था। जीवन की असुरक्षा, राष्ट्रीयता का अपमान, कलाकृतियों का खण्डन, स्वाभिमान का हनन, सम्पत्ति का अपहरण जैसे तत्त्वों ने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच भेदभाव और वैमनस्य की जबर्दस्त दीवाल खड़ी कर दी थी। धर्मान्धता और नारी के सतीत्वहरण के कारण राष्ट्र जीवन में निराशा का वातावरण छा गया था। फलतः उस समय भौतिक सुख की ओर से उदासीनता तथा भगवद्भक्ति की ओर संलग्नता दिखाई देती है।
डॉ. त्रिगुणायत ने इन राजनीतिक परिस्थितियों के फलस्वरूप भारतीय जीवन और समाज पर निम्निलिखित प्रभाव देखे हैं। १. धर्मसुधार की भावना जाग्रत हुई। नाथपन्थ, लिंगायत, सिद्धसंत आदि पन्थों का उदय इसी धर्म सुधार भावना के कारण हुआ था। इन सबका लक्ष्य हिन्दू धर्म और इस्लाम में सामंजस्य स्थापित करना था, २. पर्दा प्रथा समाज में दृढ़ हो गई ताकि स्त्रियों को बलात्कार आदि जैसे कुकृत्यों से बचाया जा सके, ३. धर्म सगुणापासना में असमर्थ होने के कारण निर्गुणोपासना की ओर झुका, तथा ४. ऐकान्तिकता और निवृत्यात्मकता से प्रेरित होकर साधकों ने निर्गुण ब्रह्म की उपासना आरंभ की।" २. धार्मिक पृष्ठभूमि
__ जैसा अभी हम देख चुके हैं, इतिहास के मध्यकाल में भारत का सांस्कृतिक धरातल देशी-विदेशी राजाओं के आक्रमणों से विश्रृंखलित रहा। भारत का जनमानस उन आक्रमणों से त्रस्त हो गया
और फलतः अपने धर्मों में सामयिक परिवर्तन की ओर देखने लगा। इस युग में भक्ति का प्राधान्य रहा। सभी धर्मो में भक्ति के कारण अनेक