________________
काल-विभाजन एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि 37 भारत में उसका घनघोर प्रतिरोध हुआ। परन्तु परिस्थितिवश दिल्ली
और कन्नौज के हिन्दू साम्राज्य नष्ट हुये और यह प्रतिरोध कम हो गया। इस प्रतिरोध की आग राजस्थान, मध्यभारत, गुजरात और उड़ीसा के राजवंशों में फैलती रही और फलस्वरूप वे मुसलमानों का तीव्र विरोध अंत तक करते रहे। परन्तु पारस्परिक फूट के कारण वे मुस्लिम आक्रमणों को पूर्ण रूप से ध्वस्त नहीं कर पाये। इसलिये जनता में कुछ निराशा छा गयी। फिर भी मुसलमानों के साथ संघर्ष बना ही रहा। मेवाड़ के राजा संग्रामसिंह और विक्रमादित्य हेमचन्द्र के नेतृत्व में मुस्लिम शासकों से संघर्ष होते रहे और औरंगजेब के समय तक आतेआते हिन्दुओं की शक्ति काफी बढ़ गयी। इसे हम राजनीतिक पुनरुत्थान का युग कह सकते हैं। इस समय जाट, सिक्ख, मराठा, राणाप्रताप, शिवाजी, दुर्गादास, छात्रसाल आदि भारतीय राजाओं ने उनके दांत खट्टे किये और स्वतंत्रता के बीज बोये।
___ गुजरात में चालुक्यवंशीय नरेश, जयसिंह सिद्धराज (सं. १०११-१०४६) आदि के समय जैनधर्म की स्थिति बडी अच्छी थी। उन्होंने उसे प्रश्रय दिया था। बाद में सिन्ध पर मुहम्मद बिन कासिम की राज्य-स्थापना से जैनधर्म पर भी प्रभाव पड़ा। मुसलिम आक्रमणों से बंगाल, आसाम, उडीसा प्रदेश भी त्रस्त हो गये। देश खण्डित और विभाजित होता गया। नरेश भोग विलासित में डूबते गये और प्रजा का उत्पीड़न बढता गया। उसकी आर्थिक स्थिति भी विघटित होने लगी। सामन्त और उपसामन्त प्रथा ने नई-नई विपदाओं को निमन्त्रित कर लिया।
उपर्युक्त राजनीतिक परिस्थितियों से यह स्पष्ट है कि इस काल में राजनीतिक अस्थिरता के कारण जन-जीवन अस्त-व्यस्त और