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________________ 36 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना इस मध्ययुगीन परम्परा का श्रीगणेश बाण भट्ट से हुआ। उनका हर्षचरित राजा हर्ष की प्रशस्ति का ऐसा ही संस्कृत काव्य है। उत्तर कालीन कवियों ने उनका भलीभांति अनुकरण किया । गाउडवहो, नवसाहसांक चरित, कुमारपाल चरित, प्रबन्ध चिन्तामणि,वस्तुपाल चरित आदि सैकड़ों ऐसे ग्रंथ हैं जो मात्र आश्रयदाताओं की प्रशस्ति में लिखे हुये हैं । इसी परम्परा में हिन्दी कवियों ने रासो साहित्य का निर्माण किया । इस साहित्य के निर्माताओं में जैन कवि विशेष अग्रणी रहे हैं। उन्होंने इसका उपयोग तीर्थंकर और जैन आचार्यो की यशोगाथा में किया है। १३ वीं शती से १८ वीं शती तक मध्य एशियाई मुसलमानों के आक्रमणों से भारत अत्यंत त्रस्त रहा। धीरे-धीरे राजसत्तायें पराधीनता की श्रृंखला में जकड़ती रहीं । मुहम्मदगोरी, गजनबी, सैयद वंश, लौदी वंश, मुहम्मद तुगलक आदि मुसलमान राजाओं के नियमित आक्रमण हुए जिससे सारा भारतीय जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। भारतीय राजे-महाराजे स्वार्थता की चपेट में अधिकाधिक संकीर्ण होते गये। उनमें परस्पर विद्वेष की अग्नि प्रज्वलित होती रही। इसी बीच बाबर हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब आदि मुगलों के भी आक्रमणों और प्रत्याक्रमणों ने भारतीय समाज को नष्ट-भ्रष्ट किया। भारतीय राजाओं के बीच पनपी अन्तः कलहने भी युद्धों को एक खेल का रूप दे दिया । वासनावृत्ति ने इसमें घी का काम किया। इससे मुस्लिम शासकों का साहस और बढ़ता गया । इसके बावजूद मुस्लिम शक्ति को भारतीय राजाओं ने सरलतापूर्वक स्वीकार नहीं किया । लगभग १२ वीं शताब्दी तक उत्तर
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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