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काल-विभाजन एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ___35 व्यापारिक वृत्ति के कारण अधिक रहा है। इसलिए प्रारम्भिक हिन्दी जैन साहित्य इसी प्रदेश में सर्वाधिक मिलता है। आगे चलकर दिल्ली, मगध और मध्यप्रदेश भी हिन्दी जैन साहित्य के गढ़ बने। इस साहित्य में तत्कालीन धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण भी परिलक्षित होता है।
साधारणतः बारहवीं शताब्दी तक राजाओं में परस्पर युद्ध होते रहे और युद्धों का मूल कारण था श्रृंगार-प्रेम परक भावनाओं का उद्वेलन और कन्याओं का हठात् अपहरण। राजा लोग इसी में अपने पुरुषार्थ की सिद्धि मानते थे। उन पर अंकुश रखने के लिए जनता के हाथ में किसी प्रकार का सम्बल नहीं था। उनकी राजनीतिक चेतना सुप्तप्राय हो चुकी थीं। फलतः जनता में राजाओं के प्रति भक्ति सेवा भावना, आत्म समर्पण और राजनीतिक जीवन के प्रति उदासीनता छा गयी थी। उसके मन में राष्ट्रीय भावनायें अत्यंत सीमित हो चुकी थी। इन परिस्थितियों ने कवियों को राजाओं का मात्र प्रशस्तिकार बना दिया। वे अपने आश्रय दाताओं के गुणगान में ही अपनी प्रतिभा का उपयोग करने लगे। उन्हें अपने आश्रयदाता के सामन्ती ठाट-बाट और विलासिता के चित्रण में विशेष रुचि थी। लगभग ५०० वर्षों के लम्बे काल में कान्यकुब्ज के यशोवर्मन के राजकवि भवभूति ने और प्रतिहार वंश के कुलगुरु राजशेखर ने अपने आश्रयदाता की प्रशस्ति का गान न करके रामायण और महाभारत केराजनीतिक आदर्शों को अपने ग्रंथ महावीर चरित, उत्तर रामचरित, बाल भारत और बाल रामायण में स्थापित किया।
अपने आश्रयदाता राजाओं की प्रशस्ति का गान करने वाली