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________________ 34 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना भाषा और साहित्य का काल विभाजन एक वैशिष्ट्य लिये हुए है। उसका मध्ययुग १३५० ई.से १८५० ई. तक चलता रहता है। इस समय तक विदेशी आक्रमणों के फलस्वरूप तथा ब्रिटिश राज्य के कारण सामाजिक क्रांति सुप्तावस्था में रही। असहायावस्था में ही भक्ति आन्दोलन हुए और रीतिबद्ध तथा रीतिमुक्त साहित्य का सृजन हुआ। जैन अध्यात्मवाद अथवा रहस्यवाद की प्रवृत्तियों को जन्म देने और उन्हें विकसित करने में राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयत्न करेंगे। १.राजनीतिक पृष्ठभूमि __ भारत की राजनीतिक अव्यवस्था और अस्थिरता का युग हर्षवर्धन (६०६-६४७ ई.) की मृत्यु के साथ ही प्रारंभ हो गया। सामाजिक विश्रृंखलता और पार्थक्य भावना बलवती हो गई। भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त हो गया। ऐसी परिस्थिति में ८ वीं शती के पूर्वार्ध में कन्नोज में यशोवर्मा का आधिपत्य हुआ जो राष्ट्रकूटों की प्रचण्ड शक्ति के कारणा छिन्न-भिन्न हो गया। उसके बाद गुर्जर प्रतिहारों ने उस पर लगभग ११वीं शती तक राज्य किया। राजा वत्सराज (७७५-८०० ई.) जैनधर्म का लोकप्रिय सहायक राजा था। उसी के राज्य में जिनसेन ने हरिवंशपुराण, उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला तथा हरिभद्र सूरि ने चितौड़ में अनेक ग्रंथों की रचना की। यहां यह उल्लेखनीय है कि ऐसे निवृत्तिपरक साधकों में जैन साधक प्रधान रहे हैं। जिनका प्रभाव पश्चिमोत्तर प्रदेश में कदाचित्
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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