________________
काल-विभाजन एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
33
उपाध्याय, जयचन्द विद्यालंकार, मोतीलाल शर्मा आदि विद्वान विशेष उल्लेखनीय हैं । विदेशीय विद्वानों में ए. एल. क्रोबर (Krober), वाउवेनार्क्स (Vavuenargues), वाल्टेयर (Voltire), मैथ्यू अर्नाल्ड (Matheuce Arnold), फिलिप बैग्वी (Philid Beglu) व्हाइट (Leslie आदि विद्वानों के नाम लिये जा सकते हैं। ये सभी विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि संस्कृति मानव की एक गतिशील प्रवृत्ति है जो व्यक्ति अथवा समाज की अपनी परिस्थिति, परिवेश, संस्कार, मान्यताओं आदि की पृष्ठभूमि में परिवर्तित होती चली है ।
A. White)
भारतीय साहित्य और संस्कृति की भी यही कहानी है। अपनी सार्वभौमिक आध्यात्मिक साधनों के पुनीत आधार पर वह उनके झंझावातों में भी अपना अस्तित्व बनाये रखने में सक्षम हुई। अनेकता में एकता उसका मूलमंत्र रहा है। धर्म दर्शन की लोक मांगलिक पृष्ठभूमि में समाज और साहित्य का निर्माण हुआ है। वैविध्य होते हुए भी जीवन के शाश्वत मूल्य परस्पर गुथे हुये हैं। इसलिए एक धर्म, सम्प्रदाय, साहित्य और संस्कृति दूसरे धर्म, सम्प्रदाय, साहित्य और संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी । इसी पृष्ठभूमि में हम मध्ययुग के विविध आयामों पर संक्षिप्त विचार करेंगे।
इतिहास का मध्ययुग साधारणतः सातवीं-आठवीं शती से १७-१८ वीं शती तक माना जाता है। भारतीय इतिहासकारों ने इसे पूर्वमध्ययुग (६५० ई. से १२०० ई. तक) और उत्तर मध्ययुग (१२० ई. से १७०० ई. तक) के रूप में विभाजित किया है। यह विभाजन राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक, ऐतिहासिक आदि प्रवृत्तियों पर आधारित है। आधुनिक आर्य भाषायें भी इसी काल की देन है। हिन्दी