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संदर्भ अनुक्रमणिका ५७. बनारसीविलास, अध्यात्मपद पंक्ति, ५, पृ. २२४ ५८. रागीविरागी के विचार में बडोई भेद, जैसे 'भटा पचकाहंकाह को बयारे है।'
जैन शतक, १८
हिन्दी पद संग्रह, पृ.१६६ ६०. वही, पृ. १६६ ६१. ब्रह्मविलास, शत अष्टोतरी, ६२. ब्रह्मविलास, मिथ्यात्व विध्वंसन चतुर्दशी, ७-१२
ब्रह्मविलास, उपदेशपचीसिका, २० । ६४. "खाय चल्यौ गांठ की कमाई कोड़ी एक नाहीं । तो सौ मूढ दूसरो न ढूढयो कहूं
पायो है।। ब्रह्मविलास, अनित्यपचीसिका, ११
वही, सुपथ-कुपथ पचीसिका, ५-२२ ६६. वही, मोह भ्रमाष्टक ६७. वही, रागादि निर्णयाष्टक, २ ६८. हिन्दी पद संग्रह, बधजन, पृ.१९६
बुधजनविलास, २९ वही, ७१
अध्यात्म पदावली, पृ. ३६० ७२. अध्यात्म पदावली, पृ.३४४ ७३. छहढाला, दौलतराम, द्वितीय ढाल; मनमोदक पंचशती, १०६-८
बनारसीविलास, भाषासूक्त मुक्तावली, ६ पृ. २० ७५. वही, ७२, पृ. ५४ ७६. ब्रह्मविलास, शत अष्टोत्तरी, ३२-३३
ब्रह्मविलास, ३९-४४, हिन्दी पद संग्रह, पृ. ४३ ७८. वही, ७९-८१ ७९. बनारसीविलास, भाषासूक्तावली, ७३-७६ ८०. जो सुजन चित्त विकार कारन, मनहु मदिरा पान। जो भरम भय चिन्ता
बढावत, असित सर्प समान।। जो जन्तु जीवन हरन विष तरु, तनदहनदवदान। सो कोपरांश बिनाशि भविजन, पहहु शिव सुखथान।। वही भाषासूक्तावली, ४५।