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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ३२. सन्मति तर्क प्रकरण, ३-५३ ३३. बनारसीविलास, अध्यातम बत्तीसी, ११-१३ ३४. बनारसी विलास, अध्यातम बत्तीसी ९-१० ३५. वही, पृ.१४ ३६. स्थानांग ४१८, समवायांग ५ ३७. बनारसी विलास कर्म प्रकृति विधान आदि ३८. बनारसी विलास, मोक्ष पैठी, पृ. १८ ३९. हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कवि, पृ.९९ ४०. हिन्दी पद संग्रह, पृ.१६५ ४१. ब्रह्मविलास, पुण्य पचीसिका, १७, पृ.५, नाटक पचीसी २ पृ. २३ ४२. ब्रह्मविलास, अनित्यपचीसिका, १६ पृ. १७५ ४३. बुधजन विलास पद ७३ ४४. हिन्दी पद संग्रह, पृ. २४१ कर्मन की रेखा न्यारी से विधना टारी नाहिटरै। ४५. बनारसी विलास-पृ. २४० ४६. ब्रह्मविलास, परमार्थ पद पंक्ति, १२ रूपचन्द “लसुन के पात्र कि वास कपूर
की कूपर के पात्र कि लसुन को होइ" कहकर कर्म प्रकृति को स्पष्ट करते हैं। ४७. परमार्थी दोहाशतक, जैनहितेषी, भाग ६, अंक ५-६; जैन सिद्धान्त भवन
आरा में एक हस्तलिखित प्रति है। ४८. कर्मघटावलि, बधीचन्द मन्दिर, जयपुर, गुटकानं.१०८ ४९. विशेष देखिए, डॉ. भागचन्द्र जैन, बौद्ध संस्कृति का इतिहास, प्रथम अध्याय ५०. बनारसी विलास, ज्ञानवावनी, ५, नाटक समयसार, उत्थानिका, ९ भूधर
विलास, पद९ ५१. बनारसी विलास, मोक्ष पैठी ९ ५२. वही, कर्म छत्तीसी ५३. बनारसी विलास, कर्मछत्तीसी, १-३७ ५४. ब्रह्मविलास, अनादि बत्तीसिका, पृ. २२० ५५. नाटक समयसार, पृ.९६ ५६. नाटक समयसार, निर्जराद्वार १४, पृ. १३८,