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________________ 444 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ८१. वही, ५१ ८२. छांड़ि दे अभिमान जियरे छांडि दे अभिमान।। काको तू अरु कौन तेरे, सब ही है महिमान। देख राजा रंक कोऊँ, थिर नहीं यह थान।।१।। ब्रह्मविलास, परमार्थपद पंक्ति, १२, पृ.११३ ८३. वही, फुटकर कविता, १५, पृ. २७६ ८४. कुशल जननकौ बांझ, सत्य रविहरन साँझ थिति। कुगति युवती उरमाल, मोह कुंजर निवास छिति।। शम वारिज हिमराशि, पाप सन्ताप सहायनि। अयश खानि जान, तजहु माया दुःखदायनि।। बनारसीविलास, भाषासूक्तावली, ५३-५६ माया छाया एक है, घटै बट्टै छिनमांहि। इनकी संगति जे लगै, तिनहिं कहीं सुख नाहिं।।१६।। वहीपृ. २०५। ८६. हिन्दी पद संग्रह, पृ.१५४ ८७. आनन्दघन बहोत्तरी, पद ९८ बनरसीविलास, भाषा सूक्तावली, ५८ ८९. वही, १९, पृ. २०५, ब्रह्मविलास, पुण्यपचीसिका, ११ पृ. ४ हिन्दी पद संग्रह,पृ. १९७ ९१. बुधजनविलास, २९ ९२. जैनशतक, ७६ ९३. हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. २३५ ९४. हिन्दी पद संग्रह, पं.रूपचन्द्र, पृ. ३१ ९५. वही, पृ.३३ स्वपर विवेक विनाभ्रम भूल्यौ, मैं मैं करत रह्यौ, पद ४१ । ९६. हिन्दीजैन भक्तिकाव्य और कवि, पृ. ३८ ९७. वही, पृ. ४१ तोहि अपनपौ भूल्यौरे भाई, पद ५५ ९८. वही, पृ.५० ९९. बनारसीविलास, ज्ञानपच्चीसी५-६ १००. वही, नामनिर्णय विधान, ७. पृ. १७२ १०१. वही, अध्यात्मपद पंक्ति, २-४ १०२. ब्रह्मविलास, परमार्थ पद पंक्ति, ६१
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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