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________________ 434 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना १२) प्राचीन जैन किंवा जैनेतर रहस्यवादी साधक भारतीय साधनाप्रकार से सम्बद्ध थे पर आधुनिक रहस्यवादी कवियों पर हीगल वर्डस्वर्थ, ब्लेक, बर्नार्डशा, क्रोचे आदि का प्रभाव माना जाता है। १८ इस प्रकार प्राचीन और आधुनिक रहस्यभावना किंवा रहस्यवाद में सम्बन्ध अवश्य है पर साधकों के दृष्टिकोण निश्चित ही भिन्न-भिन्न रहे हैं। प्राचीन साधकों के समान, प्रसाद, निराला, पन्त, महादेवी वर्मा आदि आधुनिक रहस्यवादी कवियों पर भी दर्शन विशेष की छाप दिखाई देती है। पर वे प्राचीन कवियों के समान साम्प्रदायिकता के रंग में उतने अधिक रंगे नहीं। इसका मुख्य कारण यह था कि दोनों युगों के साधक अपने युग की परिस्थितियों से प्रभावित रहे हैं। इसलिए रहस्य भावना को सही अर्थ में समझने के लिए हमें उसके विकासात्मक स्वरूप को समझतना पड़ेगा। इस सन्दर्भ में मध्यकालीन हिन्दी जैन काव्य में अभिव्यक्त रहस्यभावना की उपेक्षा नहीं की जा सकती और न उसे साम्प्रदायिकता अथवा धार्मिकता के घेरे में बांधकर अनावश्यक कहा जा सकता है। हमारे प्रस्तुत अध्ययन से यह स्पष्ट हो जायेगा कि रहस्यभावना के विकास में आदिकालीन और मध्यकालीन हिन्दी जैन कवियों का विशेष योगदान रहा है। आदिकाल में इस सहस्यभावना की अभिव्यक्ति उतनी गहरी नहीं दिखाई देती है जितनी वह मध्यकालीन हिन्दी जैन कवियों के काव्य में समरस हुई है । मध्यकाल में वह चर्मोत्कर्ष अवस्था में पहुंच चुकी थी।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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