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________________ रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 427 इस समरसता को प्राप्त करने के लिए कबीर ने अपने को 'राम की बहुरिया' मानकर ब्रह्म का साक्षात्कार किया है। पिया के प्रेमरस में भी कबीर ने खूब नहाया है। बनारसीदास और आनन्दघन ने भी इसी प्रकार दाम्पत्यमूलक प्रेम को अपनाया है। कबीर के समान ही छीहल भी अपने प्रियतम के विरह से पीड़ित है। आनन्दघन की आत्मा तो कबीर से भी अधिक प्रियतम के वियोग में तड़पती दिखाई देती है। ०३ कबीर की चुनरिया को उसके प्रितम ने संवारा" और भगवतीदास ने अपनी चुनरिया को इष्टदेव के रंग में रंगा।"कबीर और बनारसीदास, दोनों का प्रेम अहेतुक है। दोनों की पत्नियां अपने प्रियतम के वियोग में जल के बिना मछली के समान तड़फी है। आध्यात्मिक विवाह रचाकर भी वियोग की सर्जना हुई है। ब्रह्म मिलन के लिए निर्गुणी सन्तों और जैन कवियों ने खूब रंगरेलियां भी खेली है। इस प्रकार निर्गुणियां सन्तों और मध्यकालीन हिन्दी जैन कवियों ने थोड़ी बहुत असमानताओं के साथ-साथ समान रूप से गुरु की प्रेरणा पाकर ब्रह्म का साक्षात्कार किया है। इसके लिए उन्होंने भक्ति अथवा प्रपत्ति की सारी विधाओं का आश्रय लिया है। जैन साधकों ने अपने इष्ट देव की वीतरागता को जानते हुए भी श्रद्धावशात् उनकी साधना की है। ७. सगुण रहस्यभावना और जैन रहस्यभावना जैसा हम पीछे देख चुके हैं, सगुण भक्तों ने भी ब्रह्म को प्रियतम मानकर उसकी साधना की है। जैन भक्तों ने भी सकल परमात्मा का वर्णन किया है जो सगुण ब्रह्म का समानार्थक कहा जा सकता है। मीरा में सूर और तुलसी की अपेक्षा रहस्यानुभूति अधिक
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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