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________________ 423 रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन जायसी और हिन्दी जैन कवियों की वर्णन शैली में अवश्य अन्तर है। जायसी ने भारतीय लोककथा का आधार लेकर एक सरस रूपक खड़ा किया है और उसी के माध्यम से सूफी दर्शन को स्पष्ट किया है । परन्तु जैन साहित्य के कवियों ने लोक कथाओं का आश्रय भले ही लिया हो पर उनमें वह रहस्यानुभूति नहीं जो जायसी में दिखाई देती है । जैनों ने अपने तीर्थंकर नेमिनाथ के विवाह का खूब वर्णन किया और उनके विरह में राजुल रूप साधक की आत्मा को तड़फाया भी है परन्तु मिलन के माध्यम से अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति के प्रस्फुटन को भूल गये, जिस जायसी ने अपने जादू भरे कमल से उसे प्राप्त कराया है, वहां पद्मावती रूपी परमात्मा भी रत्नसेन रूपी प्रियतम साधक के विरह से आकुल-व्याकुल हुई है। जैनों का परमात्मा साधक के लिए इतना तड़फता हुआ दिखाई नहीं देता वह तड़फे भी क्यों ? वह तो बेचारा वीतरागी है, रागी आत्मा भले ही तड़पती रहे । इस प्रकार सूफी और जैन रहस्यभावना के तुलनात्मक अध्ययन से यह पता चलता है कि सूफी कवि जैन साधना से बहुत कुछ प्रभावित रहे हैं। उन्होंने अपनी साहित्यिक सक्षमता से इस प्रभाव को भलीभांति अन्तर्भूत किया है। उनकी कथायें जहां एक तरफ लौकिक दिखाई देती है वहां रूपक के माध्यम से वही पारलौकिक दिखती है जबकि जैन कवि प्रतिभा सम्पन्न होते हुए भी इस शैली को नहीं अपना सके। उनका विशेष उद्देश्य आध्यात्मिक सिद्धान्तों का निरूपण करना रहा। जायसी का आत्मा और ब्रह्म ये दोनों पृथक्-पृथक् तत्त्व हैं जो अन्तर्मुखी वृत्तियों के माध्यम से अद्वैत अवस्था में पहुंचे हैं जब कि जैनों का परमात्मा आत्मा की ही विशुद्धतम स्थिति है। वहां दो पृथक्
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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