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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन
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सी दासी' जेसे उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि उन्होंने गिरधर कृष्ण को ही अपना परम साध्य और प्रियतम स्वीकार किया है। सूर, नन्ददास आदि के समान उन्हें किसी राधा की आवश्यकता नहीं हुई। वे स्वयं राधा बनकर आत्मसमर्पण करती हुई दिखाई देती हैं। इसलिए मीरा की प्रेमा भक्ति परा भक्ति है जहां सारी इच्छायें मात्र प्रियतम गिरधर में केन्द्रित हैं। सख्य भाव को छोड़कर नवधा भक्ति के सभी अंग भी उनके काव्य में मिलते हैं। एकादश आसक्तियों में से कान्तासक्ति, रूपासक्ति और तन्मयासक्ति विशेष दृष्टव्य हैं। प्रपत्त भावना उनमें कूट-कूट कर भरी हुई है। उनकी आत्मा दीपक की उस लौ के समान है जो अनन्त प्रकाश में मिलने के लिए जल रही है ।
सूफी कवियों ने परमात्मा की उपासना प्रियतमा के रूप में की है । उनके अद्वैत में निजी सत्ता को परमसत्ता में मिला देने की भावना गर्भित है। कबीर ने परमातमा की उपासना प्रियतम के रूप में की पर उसमें वह भाव व्यंजना नहीं दिखाई देती जो मीरा के स्वर में निहित है। मीरा क े रग-रग में पिया का प्रेम भरा हुआ है जबकि कबीर समाज सुधार की ओर अधिक अग्रसर हुए हैं।
मीरा की भावुकता चीरहरण और रास की लीलाओं में देखी जा सकती है जहाँ वे 'आज अनारी ले गयी सारी, बैठी कदम की डारी, म्हारे गेल पड्यो गिरधारी' कहती हैं । प्रियतम का मिलन हो जाने पर मीरा के मन की ताप मिट जाती है और सारा शरीर रोमांचित हो उठता है
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म्हांरी ओलगिया घर आया जी ।।
तन की ताप मिटी सुख पाया, हिलमिल मंगल गाया जी ।