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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 411 आवश्यकता होती है। संसार से विरक्त होकर प्रिया प्रियतम में अपने को रमा लेती है। और उसके विरह में मन के विकारों को जला देती है। मिलन होने पर वह प्रिय के साथ होरी खेलना चाहती थी पर प्रिय बिछुड़ ही गया। मिलन अथवा विवाह रचाने का उद्देश्य परमपद की प्राप्ति थी। कबीर ने इस आध्यात्मिक विवाह का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है - दुलहिन गावो मंगलाचार, हम घरि आये हो राजा राम भरतार। तन रति करि मैं मन रति करि हूं पंच तत्त्व वराती। रामदेव मोहि ब्याहन आये मैं जीवन मदमाती।। सरीर सरोवर वेदी करि हूं ब्रह्मा वेद गारै। रामदेव संग भवंरि लेहूं धनि-धनि भाग हमारै ।। सुर तेतिस कोटिक आये मुनिवर सहस अठासी। कहै कबीर हम व्याहि चते पुरुष एक अविनाशी।।२६३
अविनाशी पुरुष से विवाह करने के बाद कबीर का पीतम बहुत दिनों में घर आता है - "बहुत दिनन में प्रीतम आए।" कवि की प्रिया उसे प्रभात मानती है। बाद में तादात्म्य की सही अनुभूति मधुर मिलन और सुहागरात में होती है। वहीं कबीर की प्रिया अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव करती है -
अविगत अकल अनूपम देखा, कहता कही न जाई। सैन करै मन ही मन रहसै, गूंगे जानि मिठाई।।
इसी अवस्था में साधक और साध्य जल में जल के समान मिलकर अद्वैत हो जाते हैं
जल में कुम्भ कुम्भ में जल है, भीतर बाहर पानी। फूटा कुम्भ जल जलहिंसमाना, यह तत कह्यो गियानी।।
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