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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 409 निम्न पंक्तियों में प्रियतम के विरह का और भी संवेदन दृष्टव्य
है
चकबी विछुरी रेणिकी, आइ मिली परमाति। जे जन विछुरे राम से, ते दिन मिले न राति।। बासरि सुख न रेंण सुख, नां सुख सपुनै मांहि। कबीर विछुट्या रामसूं, ना सुख धूप न छांह।। विरहिन ऊभी पंथसिरि, पंथी बूम्दै धाइ। एक सबद कहि पीवका, कबरै मिलैंगे आइ।।२५४
आत्मसमर्पण के लिए कवियों ने आध्यात्मिक विवाह का सृजन किया है। पत्नी की तन्मयता पति में बिना विवाह के पूरी नहीं हो पाती। पीहर में रहते हुए भी उसका मन पति में लगा रहता है। पति से भेंट न होने पर भी पत्नी को उसमें सुख का अनुभव होता है । करुण आन्दन में ही उसके प्रिय का वास है। प्रिय का मिलन हंसी मार्ग से नहीं मिलता। उसके लिए तो अश्रु प्रवाह की एक सरल मार्ग है -
अंखड़ियां झांई पड़ी, पन्थ निहारि निहारि। जीभड़ियां छाला पड्या राम पुकारि पुकारि।।२२।। नैना नीझर लाइया, रहट वसै निस-जाम। पपीहा ज्यूं पिव पिव करौं, कबस मिलहुगेराम।।२४।। अंखड़ि प्रेम कसाइयां, लोग जाणै दुःखड़ियां। साई अपणे कारण, रोई रोई रत्तड़ियां।।२५।। हंसि हंसि कन्त न पाइये, जिनि पाया तिन रोइ। जो हंसि हंसि ही हरि मिले, तो न दुहागिनि कोइ।।
प्रियतम रूप परमात्मा का प्रेम वैसा ही होता है जैसा कि मीन को नीर से, शिशु को क्षीर से, पीड़ित को औषधि से, चातक को स्वाति से, चकोर को चन्द से, सर्प को चन्दन से, निर्धन को धन से, और