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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना
काल्पनिक, दिव्य और रहस्यवादी होता है। कभी-कभी अपनी प्रणय भावना को भी वह प्रकृति के माध्यम से व्यंजित करता है ।
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रहस्यवाद की अभिव्यक्ति विविध प्रकार की संकेतात्मक, प्रतीकात्मक, व्यंजनापरक एवं आलंकारिक शैलियों में की जाती है। इन शैलियों में अन्योक्ति शैली, समासोक्तिशैली, संवृत्ति वक्रतामूलक शैली, रूपक शैली, प्रतीकात्मकशैली विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। इन शैलियों में जायसी ने अपने आध्यात्मिक सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है। इसे उनका आध्यात्मिक रहस्यवाद कह सकते हैं।
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सूफी काव्यों के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि उन्होंने प्रेम और रूप का अजस्र सम्बन्ध स्वीकार किया है। इसका कारण यह है कि वे रूप को खुदा की प्रतिच्छवि मानते हैं। जीवात्मा के परमात्मा के प्रति प्रेम को उन्होंने कई प्रतीकों द्वारा व्यंजित किया है जिनमें कमल और सूर्य, चन्द्रमा और चकोर, दीपक एवं पतंग, चुम्बक और लोहा, गुलाब और भ्रमर, राग और हिरण प्रमुख हैं। इन प्रतीकों से कवि स्पष्ट ही साधक और साध्य के बीच के व्यवधान की ओर संकेत करता है अवश्य पर उनमें विद्यमान आनन्द, एकनिष्ठता और त्याग सराहनीय हैं" हर सूफी साधक जगत को एक दर्पण मानता है जिसमें ब्रह्म अथवा ईश्वर प्रतिबिम्बित होता है। मानसरोवर रूपी दर्पण में पद्मावती रूपी विराट ब्रह्म के रूप से सारा संसार अवभासित होता है। अद्वैतवाद को स्पष्ट करने का यह सरलतम मार्ग सूफी साधकों ने खोज निकाला। परमात्मा रूप प्रियतम के विरह ने इसमें संवेदनशीलता की गहरी अनुभूति जोड़ दी जिसे साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में हम एक विशेष योगदान कह सकते हैं ।