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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन आश्वासन दिया कि जीवित रहेंगे तो साथ रहेंगे और मरेंगे तो साथ रहेंगे।" यह तादात्म्य अवस्था का बहुत सुन्दर चित्रण है ।
तादात्म्य होने पर साधक को आराध्य के अतिरिक्त और कोई नहीं दिखाई देता। रतनसेन को पद्मावती के अतिरिक्त सुन्दरी अप्सरा आदि का रूप नहीं दिखाई देता । उसी के स्मरण में उसे परमानन्द को अनुभूति होती है"। धीरे-धीरे अद्वैत स्थिति आती है और दोनों एक दूसरे में ऐसे रम जाते हैं कि उन्हें सारा विश्व प्रकाशित दिखाई देने लगता है। वे ससीमता से हटकर असीमता में पहुंच जाते हैं, रतनसेन और पद्मावती इस प्रकार से एक हुए जैसे दो वस्तुएँ औंट कर एक हो जाती है।
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सूफी कवियों में मिलन की पांच अवस्थाओं का वर्णन मिलता है - फना, फक्द, सुक्र, वज्द और शह । फना में साधक साध्य के व्यक्तित्त्व के साथ बिलकुल घुल-मिल जाता है । वह अपने अहं के अस्तित्व को भूल जाता है। * फक्द अवस्था में वह उसके नाम और रूप में रम जाता है। सुप्त अवस्था में साधक साध्य के रूप का पानकर उन्मत्त हो जाता है, आनन्द विभोर हो जाता है। वज्द अवस्था में साधक को परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है और शह में उसे पूर्ण शान्ति मिल जाती है । " जायसी में पांचों अवस्थायें उपलब्ध होती हैं।
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जायसी ने परमतत्त्व का साक्षात्कार करने के लिए प्रकृति को भी एक साधन बनाया है। सृष्टि का मूल तत्त्व अद्वैत था । अविद्या आदि कारणों से उसमें द्वैत तत्त्व आया जो भ्रान्ति मूलक था। भ्रान्ति के दूर होते ही साधक स्वयं में और साध्य में तादात्म्य स्थापित कर लेता है। इस सन्दर्भ में रहस्यवादी कवि का प्रकृति वर्णन शुद्ध भौतिक न होकर