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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन
मध्यकालीन हिन्दी साहित्य में इस प्रकार की रहस्य - भावना हम विशेष रूप से सूफी, कबीर और मीरा की साधना में पाते हैं । २. सूफी रहस्य भावना
भारतीय सूफी कवियों ने सूफीमत में प्रचलित प्रायः सभी सिद्धान्तों को अन्तर्भुक्त किया है और उन पर भारतीय परम्पराओं का आवरण डाला है। उसकी परमसत्ता अलख, अरूप एवं अगोचर है, फिर भी वहां समस्त जगत के कण-कण में व्याप्त है - अलख रूप अकबर सो कर्ता। वह सबसौं, सब ओहिसौं भर्ता ।" वह सृष्टि का कारक, धारक और हारक है।" वह महान् शक्तिशाली, करुणाशील और सौन्दर्यशील है। कर्तव्य और करुण उसके आधार स्तम्भ हैं जिस प्रकार सरोवर में पड़ा प्रतिबिम्ब समीपस्थ होते हुए भी अग्राह्य है। उसी प्रकार सर्वव्यापक परमात्मा का भी पाना सरल नहीं है । परमात्मा के मूर्त और अमूर्त दोनों स्वरूपों का वर्णन सूफी कवियों ने किया है। आत्मा-परमात्मा की अद्वैत स्थिति को भी उन्होंने स्वीकार किया है। जो भी अन्तर है पारमार्थिक नहीं, व्यावहारिक ह । उसका व्यावहारिक स्वरूप मायागर्भित होता है।
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उस
सूफी साधना में साधक की चार अवस्थाओं का वर्णन मिलता
है -
१)
शरीअत अर्थात् आचार या कर्मकाण्ड का पालन
२) तरीकत अर्थात् बाह्य क्रियाकाण्ड को छोड़कर आन्तरिक शुद्धि पूर्वक परमात्मा का ध्यान करना ।
३) हकीकत अर्थात् परमात्मा के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान होना, और ४) मार्फत् अर्थात् सम्यक् साधना द्वारा आत्मा को परमात्मा में विलीन होने की क्षमता प्राप्त होना ।