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प्रथम परिवर्त काल-विभाजन एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
काल विभाजन
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सामान्यतः भारतीय इतिहास का मध्यकाल सप्तम शदी से माना जाता है। परन्तु जहां तक हिन्दी साहित्य के मध्यकाल की बात है, उसका काल कब से कब तक माना जाय, यह एक विचारणीय प्रश्न है । आ. रामचन्द्र शुक्ल ने कालविभाजन का आधार जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन को बताया है उनका विचार है "जबकि प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथसाथ साहित्य के स्वरूप में परिवर्तन होता चला जाता है।"" रुचि विशेष में परिवर्तन के समय को निश्चितकर एवं उस साहित्य में निहित प्रभावशाली प्रवृत्ति विशेष को ध्यान में रखकर ही काल-निर्णारण करना आवश्यक है। प्रायः इन विचारों को दृष्टि में रखकर हिन्दी साहित्य के प्राचीन इतिहासकारों ने एक निश्चित समय में मिली कृतियों और उनमें निहित प्रवृत्तियों के आचार पर ही उसका नामकरण और काल-विभाजन किया है।
इसके बावजूद हिन्दी साहित्य के काल विभाजन का प्रश्न अभी तक विवादास्पद बना हुआ है। डॉ. गियर्सन, मिश्रबन्धु, शिवसिंह सैंगर, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, राहुल सांकृत्यायन, डॉ.