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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना कासलीवाल ने परिक्षक के रूप में हमारे शोध प्रबंध की जो अनुशंसा की है उसके लिए मैं हृदय से कृतज्ञ हूं ।
प्रस्तुत शोध प्रबंध “मध्यकालीन हिन्दी जैन काव्य में रहस्यभावना” सन् १९७५ में नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा पीएच.डी की उपाधि के लिए स्वीकृत हुआ था। लगभग आठ वर्षो बाद वह प्रथम संस्करण के रूप में प्रकाशित हुआ । प्रस्तुत संस्करण प्रथम संस्करण का ही परिवर्धित संस्करण है । इसमें हमने आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य को भी समाहित किया है । इसमें समूचे प्राचीन हिन्दी जैन साहित्य से सामग्री एकत्रित कर “हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना" शीर्षक से उसे अब प्रकाशित किया है। यह संस्करण यद्यपि प्रथम संस्करण का ही परिवर्धित रूप है परंतु यह परिवर्धन इतनी अधिक मात्रा में हो गया है कि उसे नवीन संस्करण कहने में संकोच नहीं होगा। अतः इसे हमने प्रथम संस्करण ही कहना उचित समझा है । आशा है हमारा विद्वत्वर्ग इसका स्वागत करेंगे । इस प्रसंग में विद्वान पाठकों से क्षमा याचना भी करना चाहूंगी जिन्हें मुद्रण की अशुद्धियां पायस में कंकण का अनुभव दे रही हैं।
श्रीमती पुष्पलता जैन
तुलसा भवन, न्यू एक्सटेंशन एरिया, सदर, नागपुर - ४४०००१ फोन नं. ०७१२-२५४१७२६ दि. २८-३-२००८