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उपस्थापना कृतज्ञ हैं। इसी तरह हिन्दी जैन साहित्य के लब्धप्रतिष्ठित विद्वान स्व. डॉ. नरेन्द्र भानावत, रीडर हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के भी हम आभारी हैं जिन्होंने बडे आत्मीयता पूर्वक प्राक्कथन लिखने का हमारा आग्रह स्वीकार किया।
इसके बाद हम सर्वाधिक ऋणी हैं अपनी मातेश्वरी स्व. श्वश्रूजी श्रीमती तुलसा देवी गोरेलाल जैन के जिन्होंने हमेशा पारिवारिक अथवा गार्हस्थिक उत्तरदायित्वों से मुझे मुक्त-सा रखा । उनका पुनीत स्नेह हमारा प्रेरणा स्रोत रहा है। साहित्य के क्षेत्र में जो कुछ कर सकी हूं, उनके आशीर्वाद का फल है। उनके चरणों में नतमस्तक हूं। उन्हीं को यह कृति समर्पित है। उनके साथ ही मैं अपने जीवन साथी डॉ. भागचन्द जैन भास्कर भूतपूर्व, अध्यक्ष पालि-प्राकृत विभाग, नागपुर विश्व-विद्यालय तथा वर्तमान में प्रोफेसर एमेरिटस, मद्रास विश्वविद्यालय की भी चिर ऋणी हूं जिनसे जैनधर्म और दर्शन को समझने में सुविधा हुई है। इस पुस्तक का उन्होंने सम्पादन भी भलीभांति कर दिया है।
प्रस्तुत अध्ययन में जिन लेखकों और विद्वानों का प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष रूप से सहयोग मिला, उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूं। विशेष रूप से सर्व श्री डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, अगरचंद नाहटा परमानन्द शास्त्री, डॉ. कस्तूरचंद कासलीवाल, डॉ. प्रेमसागर, डॉ. वासुदेव सिंह, डॉ. गोविन्द त्रिगुणायत, डॉ. रामनारायण पांडेय, डॉ. नरेन्द्र भानावत प्रभृति के प्रति आभार व्यक्त करना चाहती हूं जिनके श्रम और शोध विवरण ने हमारे काम को कुछ हल्का कर दिया। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ. कस्तूरचंद