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________________ 390 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना नाम दिये हैं। जायसी ने सूर्य और चन्द्र को प्रतीक माना है। कुछ योगियों वे इडा-पिंगला को इन्द्र-सूर्य रूप में व्यंजित किया है । नाड़ी साधना में भी जायसी की आस्था रही है। प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, नास, कूर्म, कृकर, देवदत्त और धनन्जय ये दस वायुएं नाड़ियों में होकर सूर्य तत्त्व को ऊर्ध्वमुखी ओर चन्द्रतत्त्व को अधोमुखी कर दोनों का मिलन कराती है। यही अजपा जाप है। जायसी अजपाजाप से सम्भवतः परिचित नहीं थे पर जप के महत्त्व को अवश्य जानते थे आसन लेइ रहा होइ तपा, पद्मावती जपा'।" नाड़ियों में पाच नाड़ियां प्रमुख हैं जिनका योग साधना में अधिक महत्त्व है - इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, चित्रा और ब्रह्म। कुण्डलिनी साधना के सन्दर्भ में महामुद्रा महार्ध निवरीत करणी आदि मुद्रायें अधिक उपयोगी हैं। हठयोगी कुण्डलिनी का उपस्थापन करता हुआ षट्चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्रार) का भेदन करता हैं। कुछ ग्रन्थों में ताल, निर्वाण और आकाशचन्द्र को भी जोड़ दिया गया है। जायसी ने 'नवों खण्ड नव पौरी और तहं वज्र किवारै' कहकर इन चक्रों पर विश्वास व्यक्त किया है। उन्होंने योगी-योगनियों के स्वरूप पर भी चर्चा की है। जायसी आदि सूफी कवियों ने योग की शुष्कता और जटिलता को तीन प्रकार से अभिव्यक्त किया है। डॉ. त्रिगुणायत ने ‘जायसी का पद्मावत' काव्य और दर्शन में जायसी के हठयौगिक रहस्यवाद के तीन रूपों को स्पष्ट किया है -१। भावना या प्रेमभाव के आवरण में आवृत्त५, २. प्रकृति के आवरण में आवृत्त, ३. जटिल अभिव्यक्ति के आवरण में आवृत्त। कुण्डलिनी के उद्बुद्ध और प्राणवायु के स्थिर हो जाने पर साधक शून्यपथ से अनहदनाद को सुनता है। इसके लिए काम, क्रोध, मद और लोभ आदि विकारों को दूर करना आवश्यक है।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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