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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 357 नाश हो जाता है पर बल्लभाचार्य उसे नहीं मानते। वे केवल संसार का नाश मानते हैं माया तो उनकी दृष्टि में परमात्मा की ही शक्ति है। जिसके चक्कर से शंकर, ब्रह्म आदि जैसे महामानव भी नहीं बच सकें" सूर ने माया को भुजंगिनी, नटिनी, मोहनी भी कहा। काम, क्रोध, तृष्णा आदि विकार भी मायाजन्य ही हैं। माया ही अविद्या अथवा मिथ्यात्व है जिसके कारण भौतिक संसार सत्यवत् प्रतीत होता है। यही संसार भ्रमण का कारण है।"
मीरा पुनर्जन्म में विश्वास करती थी। पुनर्जन्म का कारण अविद्या, मोह अथवा कर्म है। संचित (अतीत), संचीयमान (भावी) और प्रारब्ध (वर्तमान) कर्मो में संचित कर्म ही पुनर्जन्म के कारण है। मीरा के विविध रूप उसके प्रतीक हैं। कर्म की शक्ति का वर्णन मीरा ने निम्नलिखित पद्य में स्पष्ट किया है -
करम गति टारा नारी टरां । सतवादी हरचन्द्रा राजा डोम घर नीरां भरां ।। पांच पांडुरी रानी दुपदा हाड़ हिमालां गरां । जग्य किया बलि लेन इन्द्रासन जायां पताल परां । मीरा रे प्रभु गिरधर नागर बिखरूं अमरित करां ।।"
तुलसी किस दर्शन के अनुयायी थे यह आज भी विवाद का विषय बना हुआ है। मुझे ऐसा लगता है कि वे बल्लभाचार्य के विशेष अनुयायी रहे होंगे। बल्लभाचार्य के समान ही उन्होंने भी माया को राम की शक्ति माना है - ‘मन माया सम्भव संसारा। जाव चराचर विविध प्रकारा' तथा अरु मोर तोर माया।जेंहि बस कीन्हें जीव निकाया।' कवि के अन्य दोहे से भी यह स्पष्ट है -
माया जीव सुभाव गुन काल करम महदादि । ईस अंक ते बढ़त सब ईस अंक बिनु बादि ।।१