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________________ उपस्थापना आधार पर विचार किया गया है । यहां तक आते-आते साधक अन्तरात्मा की अवस्था को प्राप्त कर लेता है। सप्तम परिवर्त रहस्यभावनात्मक प्रवृत्तियों को प्रस्तुत करता है। इस परिवर्त में अन्तरात्मावस्था प्राप्त करने के बाद तथा परमात्मावस्था प्राप्त करने के पूर्व उत्पन्न होने वाले स्वाभाविक भावों की अभिव्यक्ति को ही रहस्यभावनात्मक प्रवृत्तियों का नाम दिया गया है। आत्मा की तृतीयावस्था प्राप्त करने के लिए साधक दो प्रकार के मार्गो का अवलम्बन लेता है-साधनात्मक और भावनात्मक । इन प्रकारों के अन्तर्गत हमने क्रमशः सहज साधना, योग साधना, समरसता प्रापत्ति-भक्ति, आध्यात्मिक प्रेम, आध्यात्मिक होली, अनिर्वचनीयता आदि से सम्बद्ध भावों और विचारों को चित्रित किया अष्टम परिवर्त में मध्यकालीन हिन्दी जैन एवं जैनेतर रहस्यवादी कवियों का संक्षिप्त तुलनात्मक अध्ययन किया गया है । इस सन्दर्भ में मध्यकालीन सगुण-निर्गुण और सूफी रहस्यवाद की जैन रहस्यभावना के साथ तुलना भी की गई है। इस सन्दर्भ में स्वानुभूति, आत्मा और ब्रह्म, सद्गुरु, माया, आत्मा ब्रह्म का सम्बन्ध विरहानुभूति, योग साधना, भक्ति, अनिर्वचनीयता आदि विषयों पर लगभग ५०० जैन कवियों के ग्रन्थों के आधार पर सांगोपांग रूप से विचार किया गया है। प्रस्तुत प्रबन्ध में मध्यकाल की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को हमने बहुत संक्षेप में ही उपस्थित किया है और काल विभाजन के विवाद एवं
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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