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________________ रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 353 बालापन खेलत खोयो, जुआ विषय रस माते। वृद्ध भये सुधि प्रगटी, मो को, दुखित पुकारत तातें। सुतन तज्योत्रिय भ्रात तज्यो सब, तनतें तुचा भई न्यारी । श्रवन न सुनत चरन गति थाकी, नैन बहे जलधारी । पलित केस कण्ठ अब रुंध्यो कल न परै दिन राती ।। २१ बनारसीदास ने जीवन को ग्यारह अवस्थाओं में विभाजित किया है और प्रत्येक अवस्था की अवधि दस वर्ष मानी है।” भूधरदास ने वृद्धावस्था को जीर्णशीर्ण चरखे की उपमा देकर उसे और भी मार्मिक बना दिया- चरखा चलता नाही (रे) चरखा हुआ पुराना (वे)।" दादू ने कबीर और सूर के समान श्रवण, नयन और केस की थकान की बात की पर उन्होंने शब्द-कंपन का विशेष वर्णन किया- 'मुख ते शब्द निकल भइ वाणी' 'भूधरदास ने तो दादू के चित्रण को भी मात कर दिया जहाँ वे कहते हैं १२४ - रसना तकली ने बल खाया, सो अब केसे खूटै । शबद सूत सुधा नहिं निकसै घड़ी घड़ी पल टूटै । " २५ .१,२७. एक अन्य चित्रण में उन्होंने शरीर की जीर्णावस्था का यथार्थ चित्रण देकर अन्त में 'यह गति है। जब तक पछतै है प्राणी' कहकर पश्चात्ताप की बात कही है।" इसी प्रकार के पश्चात्ताप की बात दादू ने 'प्राण पुरिस पछितावण लगा। दादू औसर कहै न जागा' कहकर की और कबीर ने 'कहै एक राम भजन विन बूड़े बहुत बहुत संयान्त' लिखकर उसे व्यक्त किया। दौलतराम ने सुन्दरदास के समान ही शरीर की अपवित्रता का वर्णन किया है। उन्होंने उसे 'अस्थिनाल पलनसाजाल की लाल-लाल जल क्यारी' बताया और सुन्दरदास ने “हाथ पांव सोऊ सब हाड़न की नली है" कहा । " ११२८
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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