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________________ 346 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना सम्यक्त्व का नीर भरकर करुणा की केशर घोलकर ज्ञान की पिचकारी से पंचेन्द्रिय-सखियों के साथ होली खेली। आहारादिक चतुर्दान की गुलाल लगाई, तप के मेवा को अपनी झोली में रखकर यश की अबीर उड़ाई और अंत में भव-भव के दुःखों को दूर करने के लिए ‘फागुआ शिव होरी' के मिलन की कामना करते हैं। कवि ने इसी प्रसंग में बड़े ही सुन्दर ढंग से यह बताने का प्रयत्न किया है कि सम्यग्ज्ञानी जीव कर्मो की होली किस प्रकार खेलता है - ज्ञानी ऐसी होली मचाई।। राग कियो विपरीत विपन घर, कुमति कुसौति सुहाई। धार दिगम्बर कीन्ह सु संवर निज परभेद लखाई। घात विषदिनकी बचाई।। ज्ञानी ऐसी.।।१।। कुमति सखा भजि ध्यानभेद सम, तन में तान उडाई। कुम्भक ताल मृदंगसों पूरक रेचकबीन बजाई। लगन अनुभव सौं लगाई।।ज्ञानी ऐसी.।।२।। कर्म बतीता रसानाम धरि वेद सुइन्द्रि गनाई। दे तप अग्नि भसम करि तिनको, धूल अघाति उड़ाई। करी शिव तिय की तिताई ।।ज्ञानी.।।३।। ज्ञान को फाग भाग वश आवै लाख करौ चतुराई। सो गुरु दीनदयाल कृपा करि दौलत तोहि बताई। नहीं चित्त से विसराई, ज्ञानी ।।४।।५१ ५. पंच - कल्याणक विवाह, फागु और होलियों के साथ ही जैन साधकों ने अपने
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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