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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियाँ
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गावत अजपा गान मनोहर, अनहद झरसौं वरस्यो री । देखन आये बुधजन भीगे, निरख्यौ ख्याल अनोखी री ।
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सर्वत्र होली देखकर सुमनि परेशान हो कह उठती है - 'और सबै मिलि होरि रचावें हूं, करके संग खेलूंगी होरी' (बुधजन विलास, पद ४३) । इसलिए बुधजन 'चेतन खेलसमुति संग होरी कहकर सत्गुरु की सहायता से चेतन को सुमति के पास वापस आने की सलाह देते हैं
( बुधजन विलास, पद ४३) । आध्यात्मिक रहस्य भावना से ओतप्रोत होने पर कवि का चेतनराय उसके घर वापस आ जाता है और फिर वह उसके साथ होली खेलने का निश्चय करता है - 'अब घर आये चेतनराय, सजनी खेलूंगी मैं होरी। कुमति को दूरकर सुमति को प्राप्त करता है, निज स्वभाव के जल से हौज भरकर निजरंग की रोरी घोलता है, शुद्ध पिचकारी लेकर निज मित पर छिडकता है और अपनी अपूर्व शक्ति को पहचान लेता है -
अव घर आये चेतनराय, सजनी खेलांगी में होरी ॥ आरस सोच कानि कुल हरिकै, घरि धीरज बरजोरी । बुरी कुमति की बात न बूझै, चितवत हैं मोओरी, वा गुरुजन की बलि वलि जाऊं, दूरि करी मति भोरी ।। निज सुभाव जल हौज भराऊं, घोरुं निजरंग रोरी । निज त्यौं ल्याय शुद्ध पिचकारी, छिरकन निज मति दोरी ।। गाय रिझाय आप वश करिकैं, जावन द्यौं नहि पौरी । बुधजन रचि मति रहूं निरंतर, शक्ति अपूरब मोरी सजनी ।।
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दौलतरामजी का मन भी ऐसी हो होली खेलता है। उन्होंने मन के मृदंग सजाकर, तन को तंबूरा बनाकर, सुमति की सारंगी बजाकर,