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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना
नवलराम ने भी एसी ही होली खेलने का आग्रह किया है। उन्होंने निज परणति रूप सुहागनि और सुमतिरूप किशोरी के साथ यह खेल खेलने के लिए कहा है। ज्ञान का जल भरकर पिचकारी छोड़ी, क्रोध मान का अबीर उड़ाया, राग गुलाल की झोरी ली, संतोष पूर्वक शुभ भावों का चन्दन लिया, समता की केसर घोरी आत्मा की चर्चा की, 'मगनता' का त्यागकर करुणा का पान खाया और पवित्र मन से निर्मल रंग बनाकर कर्म मल को नष्ट किया। एक अन्यत्र होली में वे पुन: कहते हैं - " जैसे खेल होरी को खेलिरे" जिसमें कुमति ठगौरी को त्यागकर सुमति-गोरी के साथ होली खेल ।” आगे नवलराम यह भाव दर्शाते हैं कि उन्होंने इसी प्रकार होली खेली जिससे उन्हें शिव पेढी का मार्ग मिल गया ।
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जैसे खेल होरी कौ खेलिरे ॥
कुमति ठगोरी कौं अब तजि करि, तु साथ सुमति गोरी को ।। नवल हसी विधि खेलत है, ते पावत हैं मग शिव पौरी को ।।
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बुधजन भी चेतन को सुमति के साथ होली खेलने की सलाह देते हैं - 'चेतन खेल सुमति रंग होरी ।' कषायादि को त्यागकर, समकित की केशर घोलकर मिथ्या की शिल को चूर-चूरकर निज गुलाल की झौरी धारणकर शिव-गोरी को प्राप्त करने की बात कही
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है। कवि को विशुद्धात्मा की अनुभूति होने पर यह भी कह देते है -
निजपुर में आज मची होरी ।
उमगि चिदानन्द जी इत आये, इत आई सुमती गोरी । लोक लाज कुलकानि गमाई, ज्ञान गुलाल भरी झोरी । समकित केसर रंग बनायो, चारित की पिचुकी छोरी ।