SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 341 रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियाँ सुध बुध गोरी संग लेय कर, सुरुचि गलाल लगा रे तेरे । समता जल पिचकारी, करुणा केसर गुण छिरकाय रे तेरे ।। अनुभव पानि सुपारी चरचानि, सरस रंग लगाय रे तेरे । राम कहे जै इह विधि पेले, मोक्ष महल में जाप रे ।। द्यानतराय ने होली का सरस चित्रण प्रस्तुत किया है। वे सहज वसन्तकाल में होली खेलने का आह्वान करते हैं। दो दल एक दूसरे के सामने खड़े हैं। एक दल में बुद्धि, दया, क्षमा रूपनारी वर्ग खड़ा हुआ है और दूसरे दल में रत्नत्रयादि गुणों से सजा आत्मा रूप पुरुष वर्ग है। ज्ञान, ध्यान, रूप, डफ, ताल आदि वाद्य बजते हैं, घनघोर अनहद नाद होता है, धर्म रूपी लाल वर्ण का गुलाल उड़ता है, समता का रंग घोर लिया जाता है, प्रश्नोत्तर की तरह पिचकारियाँ चलती हैं। एक ओर से प्रश्न होता है - तुम किसकी नारी हो, तो दूसरी ओर से प्रश्न होता है, तुम किसके लड़के हो ? बाद में होली के रूप में अष्ट कर्म रूप ईंधन को अनुभव रूप अग्नि में जला देते हैं और फलतः चारों ओर शान्ति हो जाती है इसी शिवानन्द को प्राप्त करने के लिए कवि ने प्रेरित किया है।४१ जिस समय सारा नगर होली के खेल में मस्त है, सुमति अपने पति चेतन के अभाव में खेद खिन्न है। उसे इस बात का अन्यन्त दुःख है कि उसका पति अपनी सौत कुमति के साथ होली खेल रहा है। इसलिए सोचती है 'पिया विन कासो खेलों होरी' (द्यानत पद संग्रह, पद १९३)। संयोग वश चेतनराय घर वापिस आते हैं और सुमति तल्लीन होकर उनके साथ होली खेलती है - भली भई यह होरी आई आये चेतनराय (वही, पद १९३)। इसी प्रकार वे चेतन से समता रूप प्राणप्रिया के साथ 'छिमा
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy