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________________ 340 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना 'नय पंकति चाचरि मिलि हो ज्ञान ध्यान डफताल । पिचकारीपद साधना हो संवर भाव गुलाल ।। अध्यातम०।।११।। राग विराम अलापिये हो भावभगति थुमतान । रीझ परम रसलीनता दीजे दश विधिदान ।।अध्यातम०।।१२।। दया मिठाई रसभरी हो तप मेवा परधान । शील सलिल अति सीयलो हो संजम नागर पान ।।अध्यातम०।।१३।। गुपति अंग परगासिये हो यह निलज्जता रीति । अकथ कथा मुख भाखिये हो यह गारी निरनीति ।।अध्यातम०।।१४।। उद्धत गुण रसिया मिले हो अमल विमल रस प्रेम । सुरत तरंगमह छकि रहे हो, मनसा वाचा नेन ।।अध्यातम०।१५। परम ज्योति परगट भई हो, लगी होलिका आग । आठ काठ सब जरि बुझे हो, गई तताई भाग ।।अध्यातम०।।१६।। प्रकृति पचासी लगि रही हो, भस्म लेख है सोय । न्हाय धोय उज्जवल भये हो, फिर तहखेल न कोय ।।अध्यातम०।।१७।। सहज शक्ति गुण खे लिये हो चेत बनारसीदास । सगे सखा ऐसे कहे हो, मिटे मोह दधि फास।।अध्यातम०।।१८।।१२८ जगतराम ने जिन-राजा और शुद्ध परिणति-रानी के बीच खेली जाने वाली होली का मनोरम दृश्य उपस्थित किया है। वे स्वयं उस रंग में रंग गये हैं और होली खेलना चाहते हैं पर उन्हें खेलना नहीं आ रहा है - कैसे होरी खेली खेलि न आवै। क्योंकि हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, तृष्णा आदि पापों के कारण चित्त चपल हो गया। ब्रह्म ही एक ऐसा अक्षर है जिसके साथ खेलते ही मन प्रसन्न हो जाता है। उन्होंने एक अन्यत्र स्थान पर 'सुध बुध गोरी' के साथ ‘सूरुचि गुलाल' लगाकर फाग भी खेली है। उनके पास 'समताजल' की पिचकारी है जिससे 'करुणा-केसर' का गुण छिटकाया है। इसके बाद अनुभव की पान-सुपारी और सरस रंग लगाया।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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