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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियाँ
335 सभी आशाएँ पूर्ण हो गयीं। पति के साथ समत्व आलिंगन साधक जीव जब ब्रह्म से मिलता है तो एकाकार हुए बिना नहीं रहता। इसी को परमसुख की प्राप्ति कहते हैं। ब्रह्म मिलन का चित्रण दृष्टव्य है :
चोली खोल तम्बोलनी काढया गात्र अपार । रंग किया बहु प्रीयसुं नयन मिलाई तार ।।१२८
भैया भगवतीदास का 'लाल' उनसे कहीं दूर चला गया इसलिए उसको पुकारते हुए वे कहते हैं - हे लाल, तुम किसके साथ घूम रहे हो? तुम अपने ज्ञान के महल में क्यों नहीं आते ? तुमने अपने अन्तर में झांक कर कभी नहीं देखा कि वहाँ दया, क्षमा, समता और शांति जैसी सुन्दर नारियाँ तुम्हारे लिए खड़ी हुई हैं। वे अनुपम रूप सम्पन्न हैं। कहां-कहां कौन संग लागे ही फिरत लाल,
आवौ क्यों न आज तुम ज्ञान के महल में । नेकहु बिलोकि देखौ अन्तर सुदृष्टि सेती,
कैसी-कैसी नीकि नारी ठाड़ी है टलह में । एक ते एक बनी, सुन्दर स्वरूप धनी,
उपमा ने जाय बाम की चहल में ।१२९ महात्मा आनन्दघन की आत्मा भी अपने प्रियतम के वियोग में तड़पती दिखाई देती है। इसी स्थिति में कभी वह मान करती है तो कभी प्रतीक्षा, कभी उपालम्भ देती है तो कभी भक्ति के प्रवाह में बहती है, कभी प्रिय के वियोग में सुध-बुध खो देती है - "पिया बिन सुधि-बुधि भूली हो।' १३० विरह- जग उसकी शैय्या को रात भी खूदता रहता है, भोजन-स्नान करने की तो बात की क्या ? अपनी इस दशा का वर्णन किससे कहा जाय ?१३१ उसका प्रिय इतना अधिक निष्ठुर