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________________ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना जहाँ जादौपति प्यारो । “नमि बिना न रहै मेरी जियरा, मां विलंबन लाव पठाव तहां दी जहाँजगपति पिय प्यारौ' ?१२७ 334 जगतराम ने “सखी री बिन देखे रह्ययौ न जाय' और द्यानतराय ने ‘तै देखे नेमिकुमार' कहकर राजुल की आंतरिक वेदना में समरातस का सिंचन कर दिया। उनकी राजुल अपनी सखिसे नेमिनाथ के साथ मिलाने का आग्रह करती है - एरी सखि नेमिजी को मोहि मिलावो “और कहती है - "सुनरी सखि, जहाँ नेमि गये तहां मो काँ ले पहुंचावे री हां" (द्यानत पद संग्रह, २०८ ) । पर उसे जब यह समझ जाता है कि नेमिनाथ तो वैरागी हैं मुक्ति गामी हैं, तो वह कहने लगती है कि उनसे मिलना तभी सम्भव है जब वह भी वैरागिन हो जाय - पिय वैराग्य लियो है किस मिस देखन जाऊँ । ब्याहन आये पशु छुटकाये तजि रथ जनपुर गाऊँ । मैं सिंगारी वे अविकारी ज्यौं नम मुठिय समाऊँ । द्यानत जो गिनि वै विरमाऊँ कृपा करें निज ठाऊँ ।। (वही, पद १९१ ) इस सन्दर्भ में पंच सहेली गीत का उल्लेख करना आवश्यक है जिसमें छीहल ने मालिन, तम्बोलनी, छीपनी, कलालनी और सुनारिन नामक पांच सहेलियों को पांच जीवों के रूप में व्यंजित किया है। पांचों जीव रूप सहेलियों ने अपने-अपने प्रिय (परमात्मा) का विरह वर्णन किया है। जब उन्हें ब्रह्मरूप पति की प्राप्ति नहीं हो पाती हैं तो वे उसके विरह से पीडित हो जाती है । कुछ दिनों के बाद प्रिय (ब्रह्म) मिल जाता है। उससे उन्हें परम आनन्द की प्राप्ति होती है। उनका प्रिय मिलन ब्रह्म मिलन ही है। पति के मिलन होने पर उनकी
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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