SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 312 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना श्री जिनवदन नलिन स्थितकारी, श्रुतदेवी गुण गाऊं संवारी, सिद्धिबुद्धि लहुंसारी,कलहंस ऊपरिआसनधारी, जगपति त्रिभुवन माँहि संचारी, पहियो वेश विस्तारी, पयसोवन घूघर धमकारी, उरि नवसर वरमोतिनहारी, करि चूडी खलकारी। जड़ित मनोहर भूषण भारी, . अमृत भीनी लोचन तारी, सारद नाम जारी। रस निधि रे दरशन शशी संवच्छरइ रे (१६९६) ईडरनगरमझारि; श्री पोसीना पार्श्वनाथ सुपसाउलइ रे, कहि राजयरतन उवझाय भावइ रे । कविवर दौलतराम अपने आराध्य से अब दुःख को हरण करने की प्रार्थना करते हैं, और उनका गुणगान करते हुए कहते हैं कि हे परमेश्वर, तुम मोक्षमार्ग दर्शक हो और मोह रूपी दावानल के लिए नीर हो। मेरीवेदना को दूर करो और कर्म जंजीर से मुझे मुक्त करो - हमारी वीर हरो भव पार ।। मैं दुःख तपित दयामृतसर तुम, लखि आयो तु तीर । तु परमेश मोखमगदर्शक, मोहदवानलनीर ॥१॥ तुम विनहेत जगत उपगारी, शुद्ध चिदानन्द धीर । गनपतिज्ञान समुद्र न लंघे, तुम गुनसिन्धु गहीर ।।२।। याद नहीं मैं विपति सही जो, घर घर अमि शरीर । तुम गुन चिंतत नशत तथा भव ज्यौं घन चलत समीर ।।३।। कोटवार की अरज यही है, मैं दुःख सहूं अधीर । हरहु वेदना फन्द दौल की, कतर कर्म जंजीर ।।४।।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy