________________
277
रहस्यभावना के साधक तत्त्व
आत्मा एक स्थिति पर पहुंचकर सगुणऔर बाद में निर्गुण रूप हो जाता है। कविवर बनारसीदासने उसकी इन दोनों अवस्थाओं का वर्णन किया है।" आचार्य योगीन्दु ने इन्हीं को क्रमशः सकल और निकल की संज्ञा दी है।" सकल का अर्थ है अर्हन्त और निकल का अर्थ है सिद्ध । एक साकार है और दूसरा निराकार ।“ अर्हन्त के चार घातिया कर्म नष्ट हो जाते हैं और शेष चार अघातिया कर्मों के नष्ट होने तक संसार में सशरीर रहना पड़ता है। पर अर्हन्त आठों कर्मों का नाश कर चुकते हैं और सिद्ध अवस्था प्राप्त कर लेते हैं। उन्हीं को सगुण और निर्गुण ब्रह्म भी कहा गया है। हिन्दी के जैन कवियों ने दोनों की बड़े भक्तिभाव से स्तुति की है। उन्होंने सिद्ध को ही ब्रह्म कहा है। ̈ दर्शन से उन्हें चारों ओर फैला बसन्त देखने मिला है । '
८८
हीरानन्द मुकीम ने आत्मा के विशुद्ध स्वरूप को अलख अगोचर बताया तथा आत्मतत्त्व के अनुपम रूप को प्राप्त करने का उपदेश दिया।“ इसका पूर्ण परिचय पाये बिना जप तप आदि सब कुछ व्यर्थ है उसी तरह जैसे कणों के बिना तुषों का फटकना निरर्थक रहता है | धान्य विरहित खेत में बाढ़ी लगाने का अर्थ ही क्या है ? आत्मा विशुद्ध स्वरूप निर्विकार, निश्छल, निकल, निर्मल ज्योर्तिज्ञान गम्य और ज्ञायक है।" वह 'देवनि को देव सो तो बसै निज देह मांझ, ताकौ भूल सेवत अदेव देव मानिकै' के कारण संसार भ्रमण करता है ।
९१
४. आत्मा-परमात्मा
जैसा कि हम विगत पृष्ठों में कह चुके हैं, आत्मा की विशुद्धतम अवस्था परमात्मा कहलाती है। इस पर भैया भगवतीदास ने चेतन कर्म चरित्र में जीव के समूचे तत्त्वों के रूप में विवाद प्रकाश डाला है । एक