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________________ 214 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना विनयविजय ने शरीर की नश्वरता और प्रकृति को देखकर उसे एक रूपक के माध्यम से प्रस्तुत किया है। शरीर घोड़ा है और आत्मा सवार। घोड़ा चरने में माहिर है पर कैद होने में डरता है। कितना भी अच्छा-अच्छा खाये पर जीन कसने पर बहकने लगता है । कितना भी पैसा खर्च करो, संवारी के समय सवार को कहीं जंगल में गिरा देगा। क्षण भर में भूखा होता है, क्षण भर में प्यासा। सेवा तो बहुत कराता है, पर तदनुरूप उसका उपयोग नहीं हो पाता। उसे रास्ते पर लाने के लिए चाबुक की आवश्यकता होती है। उसके बिना संसार से पार नहीं हुआ जा सकताः 'घोरा झूठा है रे तू मत भूले असवारा । तोहि सुधा ये लागत प्यारा, अंत होयगा न्यारा ।। चरै चीज और डरै कैद सो, अबट चलै अटारा । जिन कैसे तब सोया चाहै, खाने को होशियारा ।। खूब खजारा खरच खिलाओ, यो सब न्यामत चारा । असबारी का अवसर आवै, गलिया होय गंवारा ।। छिनु ताता छिनु प्यासा होवै, खिदमत बहुत करावन हारा । दौर दूर जंगल में डारे, झूरे घनी विचारा ।। करहू चौकड़ा चातुर चौकस, द्यौ चाबुक दो चाटा । इस घोरे को विनय सिखावो, ज्यों पावों भवपारा ।।" बुधजन शरीर की नश्वरता का भान करते हुए शुद्ध स्वभाव चिदानंद चैतन्य अवस्था में स्थिर होने का संदेश देते हैं - ‘तन देख्या अस्थिर घिनावना..... बथधजन तनतै ममत मेटना चिदानंद पद धारना (बुधजनविलास, पद ११६)। मृत्यु अवश्यंभावी है। उसके
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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