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रहस्यभावना के बाधक तत्त्व ममत्व जोड़ लिया है। यह शरीर तुम्हारा नहीं है जिसे तुम अनादिकाल से अपना मानकर पोषण कर रहे हो। यह तो सभी प्रकार के मलों-दोषों का थैला है। इससे ममत्व रखने के कारण ही तुम अनादिकाल से कर्मो से बंधे हुए हो और दुःखों को भोग रहे हो। पुनः समझाते हुए कवि कहता है, यह शरीर जड़ है, तू चेतन है। जड़ और चेतन, दोनों पृथक्पृथक् अस्तित्व रखने वाले पदार्थो को तुम एक क्यों करना चाहते हो। यह सम्भव भी नहीं। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चरित्र ये तीनों तुम्हारी सम्पत्ति है। इसलिए सांसारिक पदार्थो से मोह छोड़कर तुम उस अजर-अमर सम्पदा को प्राप्त करो और शिवगौरी के साथ सुख भोग करो। शरीर से राग छोड़े बिना वह मिल नहीं सकता। जिन्होंने यह शरीरे-राग छोड़ दिया उन्हीं से तुम्हारी ममता होनी चाहिए। इसी ज्ञानामृत का तुम पान करो ताकि पर पदार्थो से तुम्हारा ममत्व छूट सके:
छांडि दे या बुधि भोरी, वृथा तन से रति जोरी । यह पर है, न रहै थिर पोषत, तकल कुमल की झोरी ।। यासौं ममता कर अनादि तें, बंधी करम की डोरी । सहै दुख जलधि-हिलौरी ।।१।। यह जड़ है, तू चेतन, यों ही अपनावत वरजोरी । सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चरन निधि ये हैं संपति तोरी ।। सदा विलसो शिव-गोरी ।।२।। सुखिया भये सदीव जीव जिन, यासौं ममता तोरी । 'दौल' सीख यह लीजै, पीजे ज्ञान-पियूष कटोरी । मिटै पर चाह कठोरी ।।३।।