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________________ 212 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना भैया भगवती दास को यह शरीर सप्त धातु से निर्मित महादुर्गन्ध से परिपूर्ण दिखाई देता है । इसलिए उन्हें आश्चर्य होता है कि कोई उसमें आसक्त क्यों हो जाता है। कवि भूधरदास को भी यह आश्चर्य का विषय बना कि किसी को इस शरीर से घृणा क्यों नहीं होती - ‘देह दशा यहै दिखित भ्रात, घिनात नहीं किन बुद्धि हारी है। ___ यह शरीर सभी प्रकार के अपवित्र पदार्थो से भरा हुआ है। इसलिए दौलत राम कहते हैं कि इस शरीर को घिनौनी और जड़ जानकर उससे मोह मत करो : 'मत कीज्यो जी यारी, घिन गेह देह जड़ जान के । मात पिता रज वीरजसौं यह, उपजी मलफलवारी । अस्थिमाल पल नसा जाल की, लाल लाल जलक्यारी ।। भैया भगवतीदास कहते हैं कि ऐसे घिनौने अशुद्ध शरीर को शुद्ध कैसे किया जा सकता है ? शरीर के लिए भेजन कुछ भी दो पर उससे रुधिर, मांस, अस्थियाँ आदि ही उत्पन्न होती हैं। इतने पर भी वह क्षणभंगुर बना रहता है। पर अज्ञानी मोही व्यक्ति उसे यथार्थ मानता है। ऐसी मिथ्या बातों को वह सत्य समझ लेता है।" पं. दौलतराम शरीर के प्रति मानव के राग को देखकर अत्यन्त द्रवित हो जाते हैं और कह उठते हैं- हे मूढ, इससे ममत्व क्यों करता है। यह शरद मेघ और जलबुदबुल के समान क्षणभंगुर हैं। अतः आत्मा और शरीर का भेदविज्ञान कर, शाश्वत सुख को प्राप्त करो।" एक पद में वे कहते हैं कि रे मूर्ख, तुम अपना मिथ्याज्ञान छोड़ो। व्यर्थ में शरीर से
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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