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________________ 211 रहस्यभावना के बाधक तत्त्व आयु माल का नहीं भरौसा, अंग चलाचल सारे। रोज इलाज मरम्मत चाहै, वैद बाढ़ ही हारे।।३।। भैया चरखा रंगा चंगा, सबका चित्त चुरावै। पलटा वरन गये गुन अगले, अब देख नहीं भाव।।४।। मोटा मही काट कर भाई! कर अपना सुरझेरा। अन्त आग से ईंधन होगा, भूधर समझ सबेरा।।५।।" छीहल कवि ने उदरगीत में जीव की तीनों अवस्थाओं का वर्णन किया है। बाल्यावस्था में वह नव-दस माह अत्यन्त कष्ट पूर्वक गर्भावस्था में रहता है, बाल्यावस्था अज्ञान में चली जाती है, युवावस्था इन्द्रियवासना में निकल जाती है और वृद्धावस्था में इन्द्रियाँ शिथिल होने लगती हैं सारा जीवन यों ही चला जाता है - 'उदर उदधि में दस मासाह रहयौ'। 'जरा बुढ़ापा बैरी आइओ, सुधि-बुधि नाही जब पछिताइयो।२ ऐसे शरीर से ममत्व हटाने के लिए भूधर कवि ने शरीर के सौन्दर्य और बल पर अभिमान करने वाले मोही व्यक्ति से कहा कि अब तो वृद्धावस्था आ गई, भाई ! कुछ तो सचेत हो जाओ। श्रवण शक्ति कम हो गई,पैरों में चलने की शक्ति न होने से वे लड़खड़ाने लगे। शरीर यष्टि के समान पतला हो गया, भूख कम होने लगी, आंखों में पानी गिरने लगा, दांतों की पंक्ति टुट गई, हड्डियों के जोड़ उखड़ने लगे, केशों का रंग बदल गया, शरीर में रोग ने घेरा डाल दिया, पुत्रादि सम्बन्धी उस दुःख को बांट नहीं सकते, तब और कौन बांट सकेगा ? इसलिए रे प्राणी, अब तो कम से कम अपना हित कर ले। यदि अभी भी सचेत नहीं हुआ तो फिर कब होगा ? पश्चात्ताप ही हाथ लगेगा। ‘आया रै बुढ़ापा मानी, सुधि बुधि विसरानी
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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