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________________ 206 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना जिनके पास धन है वे भी दुःखी हैं, जिनके पास धन नहीं है वे भी तृष्णावशदुःखी हैं । कोई धन-त्यागी होने पर भी सुख-लालची है, कोई उसका उपयोग करने पर दुःखी है। कोई बिना उपयोग किये ही दुःखी है। सच तो यह है कि इस संसार में कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं दिखाई देता। वह तो सांसारिक वासनाओं में लगा रहता है। पांडे जिनदास ने जीव को माली और भव को वृक्ष मानकर मालीरासो नामक एक रूपक रचा। इस भव-वृक्ष के फल विषजन्य हैं। उसके फल मरणान्तक होते हैं- 'माली वरजे हो ना रहै, फल की भूष। सुन्दरदास के लिए यह आश्चर्य की बात लगी कि एक जीव संसार का आनन्द भी लूटना चाहता है और दूसरी ओर मोक्ष सुख भी। पर यह कैसे सम्भव है ? पत्थर की नाव पर चढ़कर समुद्र के पार कैसे जाया जा सकता है ? कृपाणों की शय्या से विश्राम कैसे मिल सकता है 'पाथर की करि नाव पार-दधि उतरयौ चाहे, काग उड़ावनि काज मूढ़ चिन्तामणि बाहे। बसै छांह बादल तणी रचै धू के धूम, करि कृपाण सैज्या रमै ते क्यां पावै विसराम।।" विनयविजय संसारी प्राणियों की ममता प्रवृत्ति को देखकर भावुक हो उठते हैं और कह उठते हैं - ‘मेरी मेरी करत बाउरे, फिरे जीव अकुलाय' । ये पदार्थ जल के बुलबुले के समान क्षणभंगुर हैं । उनसे तूं क्यों ललचाता है ? माया के विकल्पों ने तेरी आत्मा के शुद्ध स्वभाव को आच्छादित कर लिया है। मृगतृष्णा और अतृप्ति के कांटों
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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