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________________ रहस्यभावना के बाधक तत्त्व 205 विरागता की ओर जाने को बाध्य करता है। इसलिए इससे दूर होने के लिए वे ब्रह्मज्ञान का अनुभव आवश्यक मानते हैं। यही उनके लिए कल्याण का मार्ग है। इसी संदर्भ में भैया भगवतीदास ने चौपट के खेल में संसार का चित्रण प्रस्तुत किया है.... चौपट के खेल में तमासौ एक नयो दीसै, जगत की रीति सब याही में बनाई है।" यह संसार की विचित्रता है। किसी के घर मंगल के दीप जलते हैं, उनकी आशायें पूरी होती हैं, पर कोई अंधेरे में रहता है, इष्ट वियोग से रुदन करता है, निराशा उसके घर में छायी रहती है। कोई सुन्दरसुन्दर वस्त्राभूषण पहिनता, घोड़ों पर दौडता है पर किसी को तन ढांकने के लिए भी कपड़े नहीं मिलते। जिसे प्रातःकाल राजा के रूप में देखा वही दोपहर में जंगल की ओर जाता दिखाई देता है। जल के बबूले के समान यह संसार अस्थिर और क्षणभंगुर है। इस पर दर्प करने की क्या आवश्यकता?२ वह तो रात्रि का स्वप्न जैसा है, पावक में तृणपूल'सा है, काल-कुदाल लिए शिर पर खड़ा है, मोह पिशाच ने मतिहरण किया है। __ संसार जीव द्रव्यार्जन में अच्छे बुरे सभी प्रकार के साधन अपनाता, मकान आदि खड़ा करता, पुत्र-पुत्री आदि के विषय में बहुत कुछ सोचता पर इसी बीच यदि यमराज की पुकार हो उठी तो 'रूपी शतरंज की बाजी' सी सब कुछ वस्तुयें यों ही पड़ी रह जाती, उस धनधान्य का क्या उपयोग होता? चाहत है धन होय किसी विध, तो सब काज करें जियरा जी। गेह चिनाय करूं गहना कछु, ब्याहि सुता सुत बांटिये भाजी।। चिन्तत यौं दिन जाहिं चले, जम आमि अचानक देत दगाजी। खेलत खेल खिलारि गर्यै, रहि जाइरूपी शतरंज की बाजी।।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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