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रहस्यभावना के बाधक तत्त्व कविवर बनारसीदास संसार की नश्वरशीलता पर विचार करते हुए कहते हैं कि सारे जीवन तूने व्यापार किया, जुआ आदि खेला, सोना-चांदी एकत्रित किया, भोग वासनाओं में उलझा रहा। पर यह निश्चित है कि एक दिन यम आयेगा और तुम्हें यहां से उठा ले जायेगा। उस समय यह सारा वैभव यहीं पड़ा रह जायेगा। आंधी-सी चलेगी। सब कुछ चला जायेगा यह कराल काल की कृपाण सदैव तुम्हारे सिर पर लटकती रहती है । अब तो वृद्धावस्था भी आ गयी। इस समय तो कम से कम मन में यह सूझ आजाय और जन्म-मरण की बात को सोचकर संसार के स्वभाव पर विचार कर लें :
वा दिन को कर सोच जिय मन · है । बनज किया व्यापारी तूने टांडा लादा भारी । ओछी पूंजी जुआ खेला आखिर बाजी हारी रे ।। आखिर बाजी हारी, कर ले चलने की तैयारी । इक दिन डोर होयगा वन में।। वा दिन ।।१।। झूठे नैना उलफत बांधी, किसका सोना किसकी चांदी। इस दिन पवन चलेगीआंधी, किसकी बीबी किसकीबांदी।। नाहक चित्त लगा बै धन में।। वा दिन ।।२।। मिट्टी सेती मिट्टी मिलियो, पानी से पानी ।। मूरख सेती मूरख लियो, ज्ञानी से ज्ञानी ।। यह मिट्टी है तेरे तन में।। वा दिन ।।३।। कहत बनारसि सुनि भवि प्राणी, यह पद है निरवाना रे। जीवन मरन किया सौ नाहीं, सिर पर काल निशानारे ।। सूझ पड़ेगी बुढ़ापेपन में।।वा दिन ।।४।।'