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पंचम परिवर्त
रहस्यभावना के बाधक तत्त्व रहस्य भावना का चरमोत्कर्ष ब्रह्मसाक्षात्कार है। साहित्य में इस ब्रह्मसाक्षात्कार को परमार्थ प्राप्ति, आत्म साक्षात्कार परमपद प्राप्ति, परम सत्य, अजर-अमर पद आदि नामों से उल्लिखित किया गया है। इसमें आत्म चिन्तन को रहस्यभावना का केन्द्र बिन्दु माना गया है। आत्मा ही साधना के माध्यम से स्वानुभूतिपूर्वक अपने मूल रूप परमात्मा का साक्षात्कार करता है । इस स्थिति तक पहुंचने के लिए उसे एक लम्बी यात्रा करनी पड़ती है। सर्वप्रथम उसे स्वंय में विद्यमान राग-द्वेष-मोहादिक विकारों को विनष्ट करना पड़ता है। ये ही विकार संसारी को जन्म-मरण के दुःख सागर में डुबाये रहते हैं। उनको दूर किये बिना न साधना का साध्य पूरा होता है और न ब्रह्मसाक्षात्कार रूप परमरहस्य तत्त्व तक पहुंचा जा सकता है। यही कारण है कि प्रायः सभी साधनाओं में उनसे विमुक्त होने का उपदेश दिया गया है। १. सांसारिक विषय-वासना
साधक कवि सांसारिक विषय-वासना पर विविध प्रकार से चिन्तन करता है। चिन्तन करते समय वह सहजभाव से भावुक हो जाता है। उस अवस्था में वह कभी अपने को दोष देता है तो कभी तीर्थंकरों को बीच में लाता है। कभी रागादिक पदार्थो की ओर