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________________ 198 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना की धम्मपरिक्खा आदि अपभ्रंश ग्रन्थ भी इसी सन्दर्भ से जुड़े हुए हैं जिनमें जैन रहस्य भावना का दर्शन अभिव्यक्त हुआ है। अपभ्रंश के इन कवियों में योगीन्दु और मुनि रामसिंह विशेष उल्लेखनीय हैं जिन्होंने आद्योपान्त रहस्य साधना को अभिव्यक्ति दी है। योगीन्दु ने अपने परमात्मप्रकाश और योगसार में आत्मा के तीनों भेदों का मार्मिक चित्रण किया है - बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। परमात्मपद की प्राप्ति के लिये उन्होंने निश्चयनय, व्यवहारनय, सम्यक्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि का वर्णन किया है। उन्होंने परमात्मा को ही निरंजन देव कहा है जो पाप पुण्य, राग-द्वेषादि भावों से मुक्त होकर जन्म-मरण से परे है (१.१९-२१)। इसी तरह मुनि रामसिंह ने शुद्धात्मा को पद्मपत्रैवाम्भसा कहकर उसे नित्य और निरंजन माना है। उनकी दृष्टि में आत्मस्वरूप को जानने के लिए किसी को बायाचार की आवश्यकता नहीं है। उसे आवश्यकता है शुद्धात्मा की अनुभूति की (पाहुड दोहा, १६३)। अपभ्रंश की इसी परम्परा को हिन्दी जैन साहित्यकारों ने आगे बढाया है। बनारसीदास ऐसे साहित्यकारों में अग्रगणनीय हैं। रइधू ने 'सोऽहं' में अपना परिचय देते हुए इसी शुद्धात्मा का सुन्दर वर्णन किया है। जैन रहस्यभावना का यही मूलबिन्दु है।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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