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________________ 197 रहस्य भावना एक विश्लेषण ‘रहस्यवाद' के स्थान पर रहस्य भावना को ही अधिक उपयुक्त माना है। रहस्य भावना के विवेचन के कारण रहस्यवाद का काव्यपक्ष भी हमारे अध्ययन की परिधि से बाहर हो गया है। रहस्यवादी प्रारम्भिक हिन्दी जैन साहित्य अपभ्रंश से अधिक प्रभावित है। इस साहित्य में महापुराण, चरितकाव्य, रूपककाव्य, कथा ग्रन्थ, सन्धि काव्य, रासो और स्तोत्र - स्तवन आदि विविध रूप पाये जाते हैं। पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ (हरिवंशपुराण) और स्वयंभू छन्द इनकी विख्यात कृतियां हैं। इन ग्रन्थों में यथास्थान कवि ने जैन रहस्य भावना को बडे मार्मिक ढंग से व्याख्यायित किया है। पुष्पदन्त (१०वीं शती) ने भी अपने अपभ्रंश महापुराण, णायकुमार चरिउ और जसहर चरिउ में पारम्परिक उपमानों के आधार पर जैन साधना का सुन्दर विवेचन किया है। धवल का हरिवंशपुराण, धनपाल की भविसयत्त कहा, वीरकवि का जंबुसामिचरिउ, मुनि कनकामर का करकंडचरिउ, धाहिल का पउमसिरि चरिउ, पद्मकीर्ति का पासचरिउ, श्रीधर का भविसयत्त चरिउ, देवसेनगणि का सुलोचनाचरिउ, यशः कीर्ति का चंदप्पहचरिउ आदि अपभ्रंश कृतियां जैन रहस्यभावना को स्पष्ट करती हुई दिखाई देती हैं । अपभ्रंश रास साहित्य की तीन धाराएं मिलती हैं - १) धार्मिक रास धारा, २) चरित काव्य सम्बन्धी रासधारा, और ३) लौकिक प्रेम सम्बन्धी रासधारा । उपदेशसायनरास, भरतेश्वर बाहुबलि रास आदि रासा साहित्य में जैन विचार-आचार पद्धति को स्पष्ट किया गया है। योगीन्दु ने परमप्पयासु या परमात्मप्रकाश नामक आध्यात्मिक रचना में आत्मा-परमात्मा सम्बन्धी अवधारणा को विवेचित करते हुए रहस्य भावना की गम्भीरता को सांगोपांग प्रस्तुत किया है। इसी तरह मुनि रामसिंह का पाहुड दोहा, देवसेन का सावयधम्मदोहा, हरिषेण
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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