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रहस्य भावना एक विश्लेषण
195 रहस्यवाद किंवा रहस्य भावना के क्षेत्र में एक नया मानदण्ड प्रस्थापित हो सकेगा।
अन्त में यहां यह कह देना भी आवश्यक है कि छायावाद मूलतः एक साहित्यिक आन्दोलन रहा है जबकि रहस्यवाद की परम्परा आद्य परम्परा रही है । इसलिए रहस्यवाद छायावाद को अपने सुकोमल अंग में सहजभाव से भर लेता है। फलतः हिन्दी-साहित्य के समीक्षकों ने यत्र-तत्र रहस्यवाद और छायावाद को एक ही तुला पर तौलने का उपक्रम किया है। वस्तुतः एक असीम है, सूक्ष्म है, अमूर्त है जबकि दूसरा ससीम है, स्थूल है और मूर्त है। रहस्य भावना में सगुण साकार भक्ति से निर्गुण निराकार भक्ति तक साधक साधना करता है। पर छायावाद में इस सूक्ष्मता के दर्शन नहीं होते। मानवतावाद और सर्वोदयवाद को भी रहस्यवाद का पर्यायार्थक नहीं कहा जा सकता। रहस्यवाद आत्मपरक है जबकि मानवतावाद और सर्वोदयवाद समाजपरक है।
__रहस्यवाद वस्तुतः एक काव्यधारा है जिसमें काव्य की मूल आत्मा अनुभूति प्रतिष्ठित रहती है। रहस्य शब्द गूढ, गुह्य, एकान्त अर्थ में प्रयुक्त होता हैं। आचार्य आनन्दवर्धन ने ध्वनि तत्त्व को काव्य का 'उपनिषद्' कहा है जिसे दार्शनिक दृष्टि से रहस्य कहा जा सकता है
और काव्य की दृष्टि से 'रस' माना जा सकता है। रस का सम्बन्ध भावानुभूति से है जो वासनात्मक (चित्तवृत्तिरूपात्मक) अथवा आस्वादात्मक होती है। रहस्य की अनुभूति ज्ञाता-ज्ञेय-ज्ञान की अनुभूति है। कवि इस रहस्य की अनुभूति को तन्मयता से जोड़ लेता है जहां रस-संचरण होने लगता है। यह अनुभूति आत्मपरक होती है, भावना मूलक होती है।
भावना शब्द का प्रयोग जैन दर्शन में अनुचिन्तन, ध्यान